मेरी कहानी आईना की तरह ,
चेहरा उल्टा बन जाता है,
जब भी हां हां बोलूं,
कमबख्त ना ना बन जाता है।
जब भी सुर लय ताल धरूं,
राग बेसुरा बन जाता है,
कल्पना ओं की दौड़ मे रहता आगे,
यथार्थ कुछ और ही बन जाता है।
कोंपलें छूने की गर कोशिश करूं,
वो कांटे बन जाती है,
जब भी समझना जाहा जीवन तुझे,
और भी तु उलझन बन जाती है ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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