Tuesday 27 March 2018

मैं शून्य हूँ

मौन में मुखर में
शब्द में निःशब्द में।
पृथ्वी में भूगर्भ में
सृष्टि में प्रलय में
तेज और निस्तेज में
यथार्थ में परिकल्पना में
शिखर पर खड़ा हुआ
मैं शून्य हूँ

मुझे हर कोई
नगण्य समझता है
पर मै काल जयी हूँ
अनंत के बाद भी बचा हुआ हूँ
अंक के बाद
शब्द के बाद
योग के बाद
समाधि के बाद
शिव के बाद
आज भी बचा हुआ हूँ मैं
मै शून्य हूँ

मैं पराकाष्ठा हूँ
चर और अचर में
उत्कर्ष और निष्कर्ष में
खगोल और भूगोल में
निर्वात में और वायु में
संग्रहण में विपणन में
शंका और समाधान में
उत्कर्ष और अनुत्कर्ष से परे
मैं शून्य हूँ

खुशी और अवसाद में
वर्तमान में भविष्य में
दबा हुआ अतीत में
कलियों में फूल में
भौंरों में मधुमक्खियों में
जात और विजात में
स्नेह और प्रतिघात में
आलोकित खड़ा हुआ
मै शून्य हूँ

देह और विदेह में
आवृत्तऔर अनावृत्त में
भूतल और आकाश में
कोंख और प्राकाट्य में
फतझड़ और बसंत में
सोहंग और विहंग में
सत्य और असत्य में
चुप होकर बोलता हुआ
मैं शून्य हूँ

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा