Saturday 5 May 2018

एक सत्य

मैं जब भी मुझमें उतरता हूँ
तो मैं क्या पाता हूँ!
इक सन्नाटा है
जो जोर जोर से चीख रहा है
अंदर एक घूप्प अँधेरा है
अन्तःकरण मलिनता से भरा हुआ है
और बाहर आकर
मैं अच्छे कपड़े पहनकर
लोगों से मीठी बातें कर
अच्छे विचारो का प्रदर्शन कर
जैसे मुझमें कोई आलौकिक छवि हो!
मैं खुद को छुपा लेता हूँ
यथार्थ को बंदी बनाकर
झूठ को नहला धुलाकर
इस्त्री कर पहन लेता हूँ
यही परम् सत्य है
असत्य को मैं स्वयमेव जीतने देता हूँ
झूठी मान और अभिलाषा के लिए
ताकि मै दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बना रहूँ
मेरा अभिमान का मर्दन ना हो.....

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़