उलझ ता रहा उम्र भर बेकसी से
नही कुछ भी हासिल मिला जिन्दगी से
बहल ता रहा मैं यूँ बातों में उनकी
वो नश्तर चुभाते रहे सादगी से
चलो कोई तो जानता है मुझे अब
बहुत खुश हूँ मैं अपनी आवारगी से
मैं लिखता रहा वो मिटाती रही सब
अजब दासताँ थी मेरी जिन्दगी से
कभी शह्र से उनके गुजरूँ तो देखूँ
वो हैं दूर कितने अभी रिंदगी से
मुझे छोड़ना इतना आसाँ नही है
मिरा नाता है प्यार से दुश्मनी से
कयामत न होगी तो क्या होगा जानम
अगर भर गया मै तिरी आशिक़ी से
चरागों को जिसने जलाया था सदियों
मिलाता हूँ आ चल तुझे उस बदी से
----हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छ.ग.