Sunday 23 May 2021

ग़ज़ल



उलझ ता  रहा   उम्र   भर   बेकसी  से

नही कुछ भी हासिल मिला जिन्दगी से



बहल   ता  रहा  मैं  यूँ   बातों में उनकी

वो   नश्तर   चुभाते   रहे   सादगी    से



चलो     कोई तो  जानता  है  मुझे अब 

बहुत  खुश  हूँ मैं  अपनी  आवारगी से



मैं   लिखता  रहा  वो मिटाती रही सब

अजब  दासताँ  थी  मेरी  जिन्दगी   से



कभी  शह्र  से  उनके  गुजरूँ तो देखूँ

वो  हैं  दूर  कितने   अभी  रिंदगी   से



मुझे   छोड़ना  इतना   आसाँ  नही  है

मिरा   नाता   है   प्यार  से  दुश्मनी  से



कयामत न होगी तो क्या होगा जानम

अगर  भर  गया  मै  तिरी आशिक़ी से


 
चरागों  को  जिसने  जलाया था सदियों

मिलाता  हूँ  आ  चल तुझे  उस  बदी से


----हेमंत कुमार "अगम"

    भाटापारा छ.ग.