Saturday 23 November 2019

जलाना पड़ता है खुद को जानता हूँ


( 1222 1222 2122 )

मेरे   बारे   में  मैं  जब  भी सोचता हूँ

मैं  अपना  ही  पता  खुद से पूछता हूँ

किसी पे मैं  अगर ग़ुस्सा  भी करूँ तो

यक़ीनन  अपना  ही बिस्तर नोचता हूँ

मेरे  पीछे  अगर  आओ  तो  पता  हो

कि  मंजिल  मैं   नही  टेढ़ा  रास्ता  हूँ

बड़े   लोगों   के  होंगे  नख़रे   हजारों

ग़रीबी   मैं   बिछाता   हूँ   ओढ़ता  हूँ

उजाले  यूँ  नही  घर  आते  हैं  साहब

जलाना  पड़ता  है खुद को जानता हूँ

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

Wednesday 20 November 2019

मैं मर चुका हूँ


न मुझमें चेतना है
न संवेदना है
न प्रेम है
न त्याग है
न शिक्षा है
न सदाचार है
न सभ्यता है
न लाज है
है तो मेरा अहम्
जो स्वार्थ से भरा है
कपट से भरा है
छल से भरा है
आवेश से भरा है
हत्यारा बन गया हूँ मैं
सुख का
मान मर्यादाओं का
ह्रदय का
प्रकृति की
स्वयं का
दूसरे शब्दों में कहूँ
मैं मर चुका हूँ.....

हेमंत कुमार"अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-अतुकांत




दर्द दिल का हरा हो गया है

(2122, 122,122)

दर्द   दिल  का   हरा   हो   गया  है

जब  से   वो   बे-वफा  हो  गया  है

चूमा था उस ने जिस भी जगह को

उस  जगह  का  भला  हो  गया  है

खुद  ही  बोए  थे  हमने  जो  काँटे

दर्द   बनकर   खड़ा  हो   गया   है

नफ़रतें  जब   से   हावी   हुईं   तो

प्यार   जैसे    हवा   हो    गया   है

अब  तो  मयख़ाना हर आदमी का

जैसे    स्थाई   पता   हो   गया   है

लोभ   हावी   हुआ   तो   हुआ   ये

ज़्यादा  भी  अब  ज़रा  हो  गया  है

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Saturday 16 November 2019

मेरा दर्द जब हम-नवा हो गया है

122/122/122/122

था जो अपना वो बे-वफ़ा हो गया है

ज़ख्म तब से हर-सू  हरा  हो गया है


अभी चाँद को मैं बुला लेता छत पर

मगर  वो  किसी गैर  का  हो गया है


मुझे  दोस्तों  की  जरूरत  नही अब

मेरा  दर्द  जब  हम-नवा हो  गया है


जो मुतमइन था पहले  मेरे असर से

किसी और का बा- खुदा हो गया है


जो आँसूओं से पिघलते ही कहाँ थे

सुना  है  वो  पत्थर खुदा हो गया है



ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

Sunday 10 November 2019

हैं मकाँ कितने घर नहीं मिलता

2122 1212 22

कोई मुझको सहर नही मिलता

हैं मकाँ कितने घर नही मिलता

याद मुझको न आए तू दिलबर

ऐसा इक भी पहर नही मिलता

चाहता   तो  हूँ  बैठना  दो  पल

राह में  पर शजर नही   मिलता

नजरों में खोंट हों अगर तो फिर

लाख  ढूँढो  गुहर  नही  मिलता

उनके  नज़रों  के  सामने  हैं पर

आजकल क्यूँ नज़र नही मिलता

ग़ज़ल

हेमंतकुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़



Saturday 9 November 2019

इश्क है तो आ यहां

2122/2122/2122

या   कहीं   इस  मुस्कुराने   में  अना है

या  मुहब्बत  में वो भी सचमुच फना है

आज मौसम ने जो बदला अपना पाला

हर  तरफ  बस  आसना  है आसना है

आसमाँ   पे   उड़ने  वाले  लौट  के आ

तेरी  अम्मी  की  यही  बस  कामना  है

उम्र भर  चलता  रहा जिससे मैं बच के

हाय!   रे   मेरा   उसी   से   सामना  है

सिर्फ  काँटें  हैं  यहाँ  ये  जान   ले  तू

इश्क  है  तो  आ  यहाँ  वरना  मना  है

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी