कोई मुझको सहर नही मिलता
हैं मकाँ कितने घर नही मिलता
याद मुझको न आए तू दिलबर
ऐसा इक भी पहर नही मिलता
चाहता तो हूँ बैठना दो पल
राह में पर शजर नही मिलता
नजरों में खोंट हों अगर तो फिर
लाख ढूँढो गुहर नही मिलता
उनके नज़रों के सामने हैं पर
आजकल क्यूँ नज़र नही मिलता
ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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