Wednesday 20 November 2019

मैं मर चुका हूँ


न मुझमें चेतना है
न संवेदना है
न प्रेम है
न त्याग है
न शिक्षा है
न सदाचार है
न सभ्यता है
न लाज है
है तो मेरा अहम्
जो स्वार्थ से भरा है
कपट से भरा है
छल से भरा है
आवेश से भरा है
हत्यारा बन गया हूँ मैं
सुख का
मान मर्यादाओं का
ह्रदय का
प्रकृति की
स्वयं का
दूसरे शब्दों में कहूँ
मैं मर चुका हूँ.....

हेमंत कुमार"अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-अतुकांत




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