Sunday 31 January 2021

दोहा गीत

     माँ सत् की आराधना,माँ सुखदायक नाम।
      माँ जीवन का सार है,माँ है चारो धाम।।
     


जीवन क्यूँ सड़ता रहा,इसी बात को तोल।
माँ की ममता का नही,शायद समझा मोल।।



     माँ की सेवा कर सतत् ,यही सार है काम
     माँ जीवन का सार है,माँ है चारो धाम.....



माँ मखमल की बिस्तरा,माँ फूलों की गाँव।
माँ सर्दी की धूप सी,माँ बरगद की छाँव।।



     माँ सूरज की रोशनी,माँ मुस्काती शाम।
     माँ जीवन का सार है,माँ है चारो धाम......


माँ अंधे की आँख है,माँ लंगड़े की पाँव।
माँ से बढ़कर है नही,दूजा कोई ठाँव।।


     माँ की आँचल सा कभी, नही मिले आराम।
     माँ जीवन का सार है,माँ है चारो धाम.....



माँ गुड़ की मीठी डली,माँ चाँवल की खीर।
माँ चटकारा चाट की,माँ समझे हर पीर।।

       माँ की गोदी में बसा,जीवन का अभिराम।
       माँ जीवन का सार है,माँ है चारो धाम.....



हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़

Saturday 30 January 2021

लघुकथा

लघु कथा

आज दादा जी गुमसुम थे।सुबह आधी कप चाय ही पिये,पेपर भी उल्टा ही पकड़े थे।कभी उठ खड़े होते कभी बैठ जाते ।शायद आज उनका मन बेचैनियों से भरा था! मुझे यह समझने में देर न लगी ,आज रक्षा बंधन का त्यौहार जो था और आज पहिली बार राखी में उनकी बहन  उपस्थित नहीं थी।उस दिन भी वो कितना रोये थे जब बहन की अचानक ही मृत्यु हो गई थी।सचमुच उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।
दादा जी अचानक कुर्सी से उठे और तेज कदमों से अपने कमरे की ओर जाने लगे ,शायद कुछ ढूँढ रहे थे ।अपनी पुरानी सल्लूखा पर हाथ डाला और कुछ टटोलने लगे शायद चाबियाँ थीं।
उसने आलमारी के ऊपर रखी पुरानी संदूक को नीचे उतारा और अपनी धोती के छोर से पोंछने लगे फिर चाबी से ताला खोला।कुछ इधर उधर देखे कुछ ढूँढे फिर बंद कर दिया और आकर बिस्तर पर बैठ गये और अपनी कलाईयों को देखने लगे ,कुछ आँखें छलछलाई फिर गंभीर हो गये।मै भी अपने आँसुओं को रोक न पाया था।
मुझे वो सब बातें याद आने लगीं जब दादा जी अपनी बहन और अपने बचपन की कहानियाँ हँस हँसकर सुनाते थे।कैसे कभी दोनो ने मिलकर दुध से मलाईयाँ चुराई थीं ,कभी साथ आम चुराए थे ,बातों बातों पर झगड़ना फिर अगले ही पल एक हो जाना वगैरह बगैरह..।
अचानक मेरे कान में आवाज आई भैया ..भैया मै आ गई ,मेरी छोटी बहन अपने ससुराल से आ गई थी उसने मुझे गले से लगाया और कुछ बातें होने लगी।बहन नाराज होते हुए बोली क्या भैया आप अभी तक तैयार भी नही हुए हो..चलो जल्दी तैयार हो जाओ ..
मैने अपनी बहन से दादा जी के संबन्ध मे कुछ बातें की और नहाने चला गया।
जब मैं राखी बँधवाने बैठा तो बहन ने दादा जी को भी बुला लिया था और हम दोनो को साथ-साथ राखी बाँधी।दादा जी की आँखे अपनी कलाई को देखते ही चमक उठी,और दूसरे ही क्षण फूट-फूट कर रो पड़े ये वही पुरानी संदूक मे रखी राखी थी.... 

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़