Friday 28 June 2019

तू मानता क्यूँ नही ....ग़ज़ल

212/212/212/212

दरिया की प्यास भी देखता क्यूँ नही

जब तू बादल है तो बरसता क्यूँ नही

तुझको धन से नवाज़ा खुदा ने बहुत

पर  ग़रीबों  के  वास्ते  दया क्यूँ नही

लड़ता है  अपनो  से रोज  बेकार ही

बे - वजह  जंग को  रोकता  क्यूँ  नही

चलना है तुमको जिस रास्ते पे सदा

काँटे  उन  राहों  का  काटता क्यूँ नही

प्यार  का फलसफा  रोज  कह देता है

प्यार  को यार फिर बाँटता  क्यूँ नही

क्या तू कहता है क्या तू नही कहता है

गर  नही  जानता , जानता क्यूँ  नही

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Friday 7 June 2019

धूप छाँव खोजता है

दो पहरी की गर्मी से
थककर झुलस कर
धूप घर के आँगन में
परदे की छाँव में बैठ गया
पसीने से तर्र
न साफा न पगड़ी
गर्म हवाओं का चक्रवात
और कहीं नही ठहरने की जगह
बेचारा करे भी तो क्या
न जंगल है न झाड़ियाँ
तालाब नदियाँ झरने
सब जगह देख लिया
कहीं भी पानी का अता पता नही
होंठ सूख चुके है
तन आग का गोला हो रहा था
जैसे अग्नि-पथ से गुजर रहा हो
सोच रहा था शाम तक मुझे
सूर्य में विलीन हो जाना है
और फिर रात भर तपना हैं
हर गर्मियों में मुझे ठंडक मिल जाती थी
अब ये धरती कैसी हो गई है
पहले तो एसा नही थी
कि मुझे छाँव भी खोजना पड़ा हो  ???

रचना
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा
रचना श्रेणी-अतुकांत

Thursday 6 June 2019

दोहा

दोहा

सादा कुरथा देख के,समझव झन गुनवान।
मन मा कतका दाग हे,देवव थोरिक ध्यान।।

आनी बानी लोभ दय,करय अपन गुनगान।
भाखा मा हे गुड़ मिले,मिठहा-मिठहा जान।।

गली खोर चारो मुड़ा,रात रात भर जाय।
जेकर लालच जेन बर,वइसन भात खवाय।।

बने असन मुखिया चुनव ,फँसव नही तुम जाल।
लालच ला छोंड़व गड़ी,रखव देश के ख्याल।।

हे  नेता - नेता  मा फरक,जइसे  बगुला हंस।
राम किसन ला छाँट लव,छोंड़व रावन कंस।।

सोंच समझ तुम वोट दव,कँहव बात मैं सार।
ढेंकी   कूटय  धान  जब , भूँसा  देय  निमार।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा