Saturday 29 December 2018

ग़ज़ल

2122    2122    2122   212
आज हो या कल कभी तो सच बयाँ हो जाएँगे

झूठ  वाले  देखना  फिर  बे जबाँ  हो  जाएँगे

जिनको हमने दे दिया है वोट अपना कीमती

वे   ही  नेता जीत कर के आसमाँ हो जाएँगे

झोंफड़ों  में  आज  जो  पैदा  हुए  हैं नातवाँ

कल  वही  बच्चे  जमाने की गिराँ हो जाएँगे

कह  रहे  थे साथ  में चलना  नही  है  राह  में

सच यही है खुद-ब-खुद वो कारवाँ हो जाएँगे

जिनको पाला जान से बढ़कर के हमने उम्र भर

नव  जवानी  में  सहज  ही  बदगुमाँ  हो जाएँँगे

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

Tuesday 28 August 2018

माँ दुआ भी है

1121/2121/2

फ़इलातु /फ़ाइलातु/फा

माँ दुआ भी है वफ़ा भी है

मेरी  दर्द  की  दवा  भी है

माँ को कैसे भूल जाऊँ मैं

वो सदा भी है ख़ुदा भी है

हो तू ही मेरी माँ हर जनम

यही रब से इल्तिजा भी है

माँ वो धागा है पतंग की

जो उड़ा भी है कटा भी है

मैं रहूँगा कैसे बिन माँ के

ये ख़ला से दिल डरा भी है

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

ख़ला-शून्यता


Tuesday 24 July 2018

कटही रमकेरिया

कटही रमकेरिया  हे तोर सुवाद  निराला,
खेड़हा, कोचयी ,कोचयी पान के इड़हर पुराना।
डुबकी, कमसयीया, कोंहड़ा लागे बढ़िया,
वाह रे !भांटा मुरयी जिमि कांदा के साग ॥

वाह रे !भाटा..........

तोरयी ,बरबट्टी अउ लौकी के साग,
कटहर ,परवर के अलगे हे  मिठास।
चुटुक ले तरूहा भुंजुआ करेला संगवारी,
आलू एति कहत हे मै सब साग के बाप॥

वाह! रे भांटा..........

अदवरी बरी रखिहा बरी बर बोहे लार,
मुनगा संग फदके झुरगा आए हे बजार।
बटुराली सेमी बर  मन कतका ललचाए,
बंधा ,फूलगोभी अउ बटकर के करले बात ॥

वाह रे! भांटा..........

टिंडा ,कुंदरू ,चरचुटिया आनी बानी,
ढेंश कांदा मसूर के मिंझरा के का बात।
पिहरी-पुटू मेछरावय बड़ भाव खावय,
खेखसी के सुवाद तो जानत हव आप ॥

वाह रे !भांटा........

किसीम किसीम के इंहा हावय भाजी,
खोटनी ,चरोटा, मुस्केनी के भाजी।
कांदा ,तिनपनिया, गोंदली भाजी मेथी के साग,
लाल भाजी पालकभाजी बथूहा भाजी हे खास॥

वाह रे भांटा मुरयी जिमि कांदा के साग,,,,,,,

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

Saturday 5 May 2018

एक सत्य

मैं जब भी मुझमें उतरता हूँ
तो मैं क्या पाता हूँ!
इक सन्नाटा है
जो जोर जोर से चीख रहा है
अंदर एक घूप्प अँधेरा है
अन्तःकरण मलिनता से भरा हुआ है
और बाहर आकर
मैं अच्छे कपड़े पहनकर
लोगों से मीठी बातें कर
अच्छे विचारो का प्रदर्शन कर
जैसे मुझमें कोई आलौकिक छवि हो!
मैं खुद को छुपा लेता हूँ
यथार्थ को बंदी बनाकर
झूठ को नहला धुलाकर
इस्त्री कर पहन लेता हूँ
यही परम् सत्य है
असत्य को मैं स्वयमेव जीतने देता हूँ
झूठी मान और अभिलाषा के लिए
ताकि मै दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बना रहूँ
मेरा अभिमान का मर्दन ना हो.....

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

Tuesday 27 March 2018

मैं शून्य हूँ

मौन में मुखर में
शब्द में निःशब्द में।
पृथ्वी में भूगर्भ में
सृष्टि में प्रलय में
तेज और निस्तेज में
यथार्थ में परिकल्पना में
शिखर पर खड़ा हुआ
मैं शून्य हूँ

मुझे हर कोई
नगण्य समझता है
पर मै काल जयी हूँ
अनंत के बाद भी बचा हुआ हूँ
अंक के बाद
शब्द के बाद
योग के बाद
समाधि के बाद
शिव के बाद
आज भी बचा हुआ हूँ मैं
मै शून्य हूँ

मैं पराकाष्ठा हूँ
चर और अचर में
उत्कर्ष और निष्कर्ष में
खगोल और भूगोल में
निर्वात में और वायु में
संग्रहण में विपणन में
शंका और समाधान में
उत्कर्ष और अनुत्कर्ष से परे
मैं शून्य हूँ

खुशी और अवसाद में
वर्तमान में भविष्य में
दबा हुआ अतीत में
कलियों में फूल में
भौंरों में मधुमक्खियों में
जात और विजात में
स्नेह और प्रतिघात में
आलोकित खड़ा हुआ
मै शून्य हूँ

देह और विदेह में
आवृत्तऔर अनावृत्त में
भूतल और आकाश में
कोंख और प्राकाट्य में
फतझड़ और बसंत में
सोहंग और विहंग में
सत्य और असत्य में
चुप होकर बोलता हुआ
मैं शून्य हूँ

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

Tuesday 13 February 2018

दोहा गीत


संस्कृति भारत की रही,जग में सदा महान।

वेलेन्टाइन  डे  नहीं ,भारत  की  पहचान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

युगल जान लें बात ये,छोड़ें मिथ्या भान।

अपनी श्रद्धा भेंट करें,जननी को श्रीमान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

लज्जा तो है ही नहीं,ना दुनिया का भान।

बाँहों में  बाँहें  भरे, करते  अधर  मिलान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

मंत्र  मुग्ध  क्यूँ  हो रहा,धर अपना अज्ञान।

संगत  झूठे  प्रेम  की , समझो  रे  नादान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

प्रेम  समर्पण  त्याग  है, प्रेम  नाम  अवदान।

खुदी राम से सीख  लें, देश  प्रेम  का  ज्ञान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

बुद्ध  कबीरा  सा  बनें,जग की गौरव गान।

प्रेम  की  देवी  यहीं , मीरा  को  लें  जान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

रामानुज हो या भरत,जानो तुम बलिदान।

एक सिंहासन ना चढ़ा,संग ,एक भगवान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

ये कलुषित संस्कार ना,मर्यादा की शान।

एसी रीति ठीक नही ,समझ मान सम्मान।।

वेलेन्टाइन  डे  नही , भारत  की  पहचान...

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा(नवागाँव)

















ग़ज़ल

22122212, 2212 ,2212
मुस्तफ़इलुन × 4

इक धुँध है कोई जो चली आती  है साया की तरह

अपने  ही  घर  में  हो  गया  हूँ  मैं पराया की तरह

कैसे अदा कर पाता माँ की प्यार की कीमत भला

ये  कर्ज वो  था जो  रहा  मुझमे बकाया की तरह

लोगों  नें जैसा  चाहा मुझको  वैसा मैं बनता गया

अक्सर रहा मैं जिन्दगी  भर इक नुमाया की तरह

सब  लोग  कहते थे बड़े  घर की  बहू थी वो मगर

जीती  रही  जो जिन्दगी  मन्हूस  आया  की तरह

पहचान  भी  पाए  नही  उसकी  सदा  को  देखिए

वो जो  मिलीं थी मुझको सेहरा में इनाया की  तरह

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)

                                 हेमंत

Monday 12 February 2018

हरिगीतिका




करिया दिखे तन साँप लटके,भूत मन हे संग मा।

बइठे हवय अरझट जघा जी,राख पोते अंग मा।।

हे  तीन  नैना  भाल  सोहय , कंठ नीला रंग मा।

गाँजा  धरे , हे  चाम  बैठे,रत हवय जी भंग मा।।


गंगा  धरे  हे अउ  जटा  मा, चाँद  सुघ्घर  हे दिखत।

कुन्डल सजे हे कान चमकत,भाल चाकर हे दिखत ।।

कंठी सजे गर मा हवय जी,राख  तन भर हे  दिखत।

पहिरे खड़ाऊँ गोड़ मा शिव,रूप  मनहर हे  दिखत।।


ग्यानी  हवय  ध्यानी  हवय ,देव  हे  विकराल  जी।

सुर,नर,मुनी हो या असुर तन,आय ओकरे लाल जी।।

भोला समझ झन भूल कर हव,पाप बर हे काल जी।

तांडव करय गुस्साय कटकट,नेत्र खोलय लाल जी।।


पीरा  हरे  रावन  असन  के , मोह  मा  बइहा  रहय।

ठोकर लगय जब पाँव मा भी,खुश हवँव मैं तो कहय।।

सिधवा निचट तो आय ओ हर,बेल पाना बर मरय।

जादा नही थोरिक मया मा, भक्त बर  हपटे  परय।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)

छत्तीसगढ़

Tuesday 6 February 2018

बसंत दोहा

अइलाये तन मा जगे, मनहर प्रीत अनंत।

सूट  बूट  पहिरे  बने, आगे ऋतु बसंत।।

डारा मन उलहोत हे, हरियर  हरियर  पान।

बुढ़वा बुढ़वा  रूख मन,होवत हवे जवान।।

मउहा के  खुश्बू  धरे , अपने  ओली  झार।

पगली  पुरवइया चले,लड़भड़ लड़भर खार।।

जंगल जंगल सुरमई, जंगल जंगल प्रीत।

आमा मउरे डार मा,कोइली गावय गीत।।

लाली  साफा  बाँध के, परसा ठाढ़े  पार।

कटही सेमरा देख तो,फूले हवय अपार।।

सर सर सर सर उड़त हे,जइसे उड़य गरेर।

रस चुहके बर  आय  हें, टेसू फूल मछेर।।

पिंयर पिंयर सरसो दिखे,पहिरे लुगरी मस्त

आनी बानी फूल खिले,महर महर ममहाय।

जइसे धरती मा सरग , चारो  मुड़ा  अमाय।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)



अरसात सवैया- सात भगण एक रगण


राम नही जिनके मुख, वो तन का कुछ मोल नही, सच बात है।

राम जपे नित जो ,हर कारण से कर पात ,तुरंत निजात है।।

है सब झूठ यहाँ ,बस राम कृपा, दुखिया मन को हरसात है।

राह सही मन राम जपो ,बस नाम यही भव, पार  करात है।।

––हेमंत कुमार मानिकपुरी

      भाटापारा (नवागाँव)

       छत्तीसगढ़

Thursday 18 January 2018

ग़ज़ल

2122/1222/1222

खत  पुराने   सभी   मेरा   जला  देना

वस्ल की हर तलब दिल से मिटा देना

मैं तो इक लम्हा था फिर रूकता कैसे

वक्त   की   बेवफ़ाई थी   भुला  देना

ज़िंदगी  में अगर ग़म भी आ जाये तो

ग़म में  रोना नही  बस  मुस्कुरा  देना

मै किसी भी के मज़हब का नही यारों

मज़हबी ना  कभी मुझको  बता  देना

गम नही मैं अगर मर भी गया तो सच

कुछ जला देगा वो कुछ तुम दबा देना

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

वस्ल-मिलन ,संयोग

Friday 12 January 2018

ग़ज़ल

पारए नाँ (1)तक उसे मिलता नही यारों

और उसकी हसरतें मरता नही यारों

नश्शए सह्बा (2)अभी चढ़ता नही तो क्या

गुजरा है दिन रात तो सोया नही यारों

है फ़रामुश जो कभी तो लौटकर आए

मेरा दिल अब भी कहीं भटका नही यारों

बादए गुलफ़ाम(3) ना हो तो मज़ा क्या है

ऐसी वैसी तो कभी पीता नही यारों

ये नक़ावत (4)है मेरी मैं दिल की कहता हूँ

औरों के जैसा मैं तो झूठा नही यारों

क़ागजों के साथ ही जीते रहे उमरा(5)

हमने बस इनकी तरफ देखा नही यारों

1-रोटी का तुकड़ा
2-शराब का नशा
3-एक गुलाबी शराब
4-शुद्धता,पवित्रता
5-धनवान लोग

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़