Wednesday 30 October 2019

Gazal


२१२/२१२/२१२/२

आज तो बच गया बरकतों से,

बाज आ अपनी इन हरकतों से।

उठ खड़ा हो चला कर खुदी से,

घाव भरता नही मरहमों से।

सच ये दुनिया है मत जा इधर तू,

ये भरी है बहुत गमजदों से।

इश्क कर ये बहुत काम का है,

तोड़ नाता सभी नफरतों से।

लेटकर नाप ले इस जमी को,

घर रहेगा यही मुद्दतों से।

तेरा आना है जाना है जिस घर,

उस जगह को बचा जलजलों से।

मौत का क्या है आयेगी इक दिन,

कर कभी दोस्ती दुश्मनों से।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

Friday 18 October 2019

ग़ज़ल

221   2121     1221      212

मफ़ऊलु फाइलातु मफ़ाईलु फाइलुन 

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

खा़के  शिफ़ा  से चैन  न आएँ तो क्या करें

ये ज़िन्दगी भी जख़्म दे जाएँ तो  क्या करें

जानें  गईं  थी  दोनों ही सम़्तों  में सच हैं ये

उस  नाशिरात को  न  भुलाएँ  तो  क्या करें

मुमकिन  नहीं  हैं पर्दे के उस पार जाना अब

हैं   उस  तरफ़  हजारों  दुवाएँ  तो  क्या  करें

इन  पत्थरों  के  शह्र  में  हैं  पत्थरों  के  घर

जब  पहुँचती  नहीं  हैं  सदाएँ  तो  क्या करें

अब  उन  गुलों  में  कोई  नही  हैं मेरा निशाँ

कमसिन  हुईं  हैं  उनकी अदाएँ तो क्या करें

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Monday 7 October 2019

श्रृंगार दोहे

आओ  बैठो  पास  में  , रख  हाथों  पे  हाथ।
जानें कब मौका मिले, है कुछ पल का साथ।।

कुछ तुम भी अपनी कहो, मैं भी कह लूँ बात।
मौसम  बहुत  हसीन  है , तारों  की है  रात।।

झींगुर   हमको   देख   के  , छेड़े  हैं  संगीत।
हम  भी  सुर में सुर मिला, आओ  गाएँ गीत।।

कुछ पल को हम छोंड़ दें, दुनिया की हर रीत।
नयनों  से  बातें  करें  ,  अधरों  से  हम  प्रीत।।

जैसे  चमके  बीजुरी , कड़काओ  हिय तार।
सावन  के घन-मेघ सा, तुम बरसाओ प्यार।।

चाँदी  जैसै  देह  को  , तारों   की  सौगात।
मैं  दिन  की  अवहेलना , तुम चंदा की रात।।

नयनों  को  विश्राम  दें, बाँहों   की  है आस।
गुच्छ पुष्प सा बन गले ,लिपटें आओ पास।।

मिलना अब मुमकिन नही,मन में हैं अवसाद।
सच कहता  हूँ तुम प्रिये, आओगे  नित  याद।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा  छत्तीसगढ़

7000953817

Sunday 6 October 2019

ग़ज़ल(उनके तहख़ाने पे तहख़ाने लगे हैं)

2122/2122/2122

जाने क्या अब लोग समझाने लगे हैं

सब  की अपने ज़द  में पैमाने लगे हैं

प्यार  तो कोई नही  करता  है साहब

ये   हक़ीक़त   सामनें  आने  लगे  हैं

शाइरी   बीमार   है   शायर   मजे  में

क्या  ग़ज़लगोई  को  बहलाने लगे हैं

भूखें हैं इतनी हवस की  क्या कहूँ मैं

ये  तो  नाते-रिस्ते  भी  खाने  लगे हैं

शह्र में अब तो सहर जैसा नही कुछ

लोग फिर अब गाँव तक आने लगे हैं

क्या हुई जो रोशनी सूरज की कमतर

जुगनुएँ  भी  पंख  फैलाने  लगे  हैं

वे  बहुत  चालाक  हैं ये जान लो तुम

उनके   तहख़ाने  पे  तहख़ाने  लगे  हैं

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा  छत्तीसगढ़






Wednesday 2 October 2019

पेड़ काटने से हुआ,धरती का नुकसान(दोहा)

दोहा
पेड़   काटने   से   हुआ , धरती का नुकसान।
हवा न अब ताजी बहे, वन-उपवन खलिहान।।

धुँआ-धुँआ  क्यों  आसमाँ , सोचें सारे लोग।
वायु  प्रदूषण  से हुआ, ईको  तंत्र  को  रोग।।

जहरीली   गैसें   उड़ें  ,  बनके   जैसे  काल।
मानव   पक्षी  जानवर  ,  होत  सभी  बेहाल।।

पानी  भी  गिरता  सदा, खंड  रूप  में  जान।
एक  ओर जल थल भरे, कहीं  रहे  अन्जान।।

कभी कभी इतना गिरे, 'थल' जल होय समान।
डूबे  ये   नाले    नदी  ,  जाय   हजारों  जान।।

कटे  पेड़  जब  नित्य  ही , कौन  लगावे  पार।
काटें   जब   भी  पेड़  जो , वृक्ष  उगावें  चार।।

जल  प्रदूषण  से  हुआ , बुरा  धरा का हाल।
कीट  पतंगें  साँप  भी , मरते हैं  हर  साल।।

शिल्प-सदन   से  बह  रहा  ,  गंदा  गंदा  नीर।
नाले  नदियों  की  हुई  , दशा  बहुत गंभीर।।

मछली  मेंढक  या  मगर, या कछुए की जात।
त्राहि त्राहि  सब कर रहे, समझो भी ये बात।।

पादप  भी  हलकान  हैं ,  झाड़  वृक्ष  या  दूब।
एक  तरफ  गंदी  हवा , अरु  गंदा जल खूब।।

ध्वनि से  भी अति हो रहा ,वायु प्रदूषण आज।
डी  जे  की आवाज सुन, हृदय होय  आघात।।

शोर   शराबे    में  कहाँ  ,  मन   होवे  हैं शांत।
पागल  पन  सा  होत  है , यही  रोग  सभ्रांत।।

बात  युवा  की  और  है  , उनको  भाये  शोर।
बूढ़ा  ,  रोगी   को   लगे ,  कर्कशता  पुरजोर।।

कहीं  प्रदूषण  जब रहे, उसका  कर  दें  नाश।
हरी   भरी   धरती   रहे , साफ  रहे  आकाश।।

बचा    सको    पर्यावरण  , ऐसा   हो   संज्ञान।
सुखी  रहें  सब  जीव  भी, चलो  बढ़ाएँ ज्ञान।।

दोहे

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़