Friday 18 October 2019

ग़ज़ल

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मफ़ऊलु फाइलातु मफ़ाईलु फाइलुन 

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ )

खा़के  शिफ़ा  से चैन  न आएँ तो क्या करें

ये ज़िन्दगी भी जख़्म दे जाएँ तो  क्या करें

जानें  गईं  थी  दोनों ही सम़्तों  में सच हैं ये

उस  नाशिरात को  न  भुलाएँ  तो  क्या करें

मुमकिन  नहीं  हैं पर्दे के उस पार जाना अब

हैं   उस  तरफ़  हजारों  दुवाएँ  तो  क्या  करें

इन  पत्थरों  के  शह्र  में  हैं  पत्थरों  के  घर

जब  पहुँचती  नहीं  हैं  सदाएँ  तो  क्या करें

अब  उन  गुलों  में  कोई  नही  हैं मेरा निशाँ

कमसिन  हुईं  हैं  उनकी अदाएँ तो क्या करें

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

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