Wednesday 30 October 2019

Gazal


२१२/२१२/२१२/२

आज तो बच गया बरकतों से,

बाज आ अपनी इन हरकतों से।

उठ खड़ा हो चला कर खुदी से,

घाव भरता नही मरहमों से।

सच ये दुनिया है मत जा इधर तू,

ये भरी है बहुत गमजदों से।

इश्क कर ये बहुत काम का है,

तोड़ नाता सभी नफरतों से।

लेटकर नाप ले इस जमी को,

घर रहेगा यही मुद्दतों से।

तेरा आना है जाना है जिस घर,

उस जगह को बचा जलजलों से।

मौत का क्या है आयेगी इक दिन,

कर कभी दोस्ती दुश्मनों से।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

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