या कहीं इस मुस्कुराने में अना है
या मुहब्बत में वो भी सचमुच फना है
आज मौसम ने जो बदला अपना पाला
हर तरफ बस आसना है आसना है
आसमाँ पे उड़ने वाले लौट के आ
तेरी अम्मी की यही बस कामना है
उम्र भर चलता रहा जिससे मैं बच के
हाय! रे मेरा उसी से सामना है
सिर्फ काँटें हैं यहाँ ये जान ले तू
इश्क है तो आ यहाँ वरना मना है
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
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