दोहा
काँसा के थारी रहय ,अउ हँड़िया के भात,
मार पालथी रँधनही,खावन ताते तात।
बटकी काँसा के रहय,पेंदी गहिरा गोल।
बने खात बासी बनय,स्वाद आय अनमोल।।
छर्रा छर्रा अउ लरम, गजब पैनहा भात।
परसँग अब्बड़ तो करय,ददा बबा मन खात।।
रहय कुँडे़रा बड़ जनिक,पेज पसावन जान।
हंडा ,हँउला मा धरय,पानी कस के तान।।
लोटा काँसा घर सबो, पीतल संग गिलास।
रहय नानकुन चरु घलो,गोड़ धोय बर खास।।
माटी के हथ फोड़वा,रखय आँच के ध्यान।
बिना तेल चीला बनय,बड़ पुरखा के ग्यान।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़