२२१२/२२१२/२२१२
मै तो हवा हूँ मेरा कोई घर नही,
मेरी रवानी है मेरा कोई घर नही।
उड़कर चलूँ मै आसमाँ ये चाह है,
पर बेटी हूँ मेरा तो कोई पर नही।
तूफाँनो से वो खूब खेला करती है,
क्या ताक पे रख्खे दिया को डर नही?
मेरे हवाले भी करो कोई सहर,
इन आँखो को अंधेरे की आदत नही।
मुझमे ही खोता जा रहा हूँ वक्त-दर,
अब निकलने का हौसला बाहर नही।
देखो ये सूरज चढ़ गया है ताक पर,
है पास कोई भी अभी बरगद नही।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़