Wednesday 20 September 2017

दोहा (छंद के छ 4 के अभ्यास))


बिन  पानी  होगे  सबो , परता  खेती  खार।
दुख मा आज किसान हे,करजा हवय अपार।।

परगे हाट-बजार हा,सुन्ना एसों साल।
जम्मो डहर दुकाल के,छँइहा हे विकराल।।

माथा धरे  सियान हे , लइका मन बिनहाल।
कोन जनम के पाप हा,लाने हवय दुकाल।।

कुरिया होय कपाट बिन,दाई बिन औलाद।
छदर-बदर तो हो जवय,रहय भले फौलाद।।

सुघ्घर ग्यान सकेल के,दव अवगुन ला बार।
जइसे  भूँसा  धान ले , सूपा  देत   निमार।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

Monday 18 September 2017

सार छंद

सत्य राह पर चला करे जो,केवल पीड़ा सहता।
झूठों के पौ-बारह होते,सत्य भूख से मरता।।

दबा पड़ा है सत्य कहीं पर,नजर नही अब आता।
चोर उचक्के बनते राजा ,यही सत्य है भ्राता।।

दाढ़ी मूछें  लंबी  लंबी , है  माथे  पर  चंदन।
भीतर से रंगीन मिजाजी,बाहर है सादापन।।

वोटों की जब बारी आती,नेता घर घर जाते।
बैठ पालथी मजबूरी में,दलितों के घर खाते।।

जनता मारी मारी फिरती,दफ्तर से दफ्तर तक।
घुसखोरों की आमद बढ़ती,जनता है नत मष्तक।।

भोले भाले लोगों को तुम,जितना तड़फाओगे।
याद रखो ये बात सदा तुम,चैन नही पाओगे।।

इक दिन तो मर ही जाना है,रख बस इतनी हसरत।
हो हर दिल से प्यारा रिश्ता,ना कोई हो नफरत।।

धीरे धीरे आगे पीछे,बारी आती सबकी।
जैसे को तैसा मिलता है,देख रहा परलोकी।।

सत्य राह मे कष्ट सदा है,सत्य वचन है भैया।
आखिर मंजिल पहुँचा देती,सदा सत्य की नैया।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

Tuesday 12 September 2017

लइकापन(सार छंद)

                    "लइकापन"
                        (सार छंद)
हो जाबो बड़का जब भइया,मोह मया फँस जाबो।
गिल्ली डंडा फुगड़ी रस्सी ,खेल कहाँ तब पाबो।।

मनमानी कर लेथन संगी,जब तक हे लइकापन।
अमली,आमा,बीही चोरा,बारी मा चल खाथन।।

परसा पाना के पुतरा बर,पुतरी खोजे जाथन।
बने बराती गड़वा बाजा,डब्बा बाँध बजाथन।।

डबरा मा मछरी चल धरबो,छींच छींच अउँटाबो।
खदबद खदबद लद्दी करबो,बामी डेमचुल पाबो।।

रच-रच चढ़थन चल गेंड़ी जी,भँवरा खूब चलाथन।
रेस टीप बर ओन्टा कोन्टा, कोला डहर लुकाथन।।

चड्डी पहिरे टायर धरके ,गली गली दउँड़ाथन।
गली खोर मा हफट गिरत ले,चक्का खूब चलाथन।।

मन भर उतलँग कर लेथन जी,चढ़थन परवा छानी।
फोदा  धरले  खेले  जाबो, चल तरिया  के  पानी।।

पेड़ झाड़ मा खोर्रा खोजत,दिन भर खार बिताथन।
मिठ्ठू  हेरे  के  चक्कर  मा,गारी  गल्ला  खाथन।।

हेमंंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

Monday 4 September 2017

दोहा

                मोर गाँव

अमली आमा लीम अउ, बर पीपर  के  छाँव।
लागय भारत छोटकुन,मोर जनम के गाँव।।

पक्की रसदा हे बने,सफा सफा सब छोर।
शौचालय बन गे हवय,घर घर ओरी-ओर।।

तरिया मा पचरी बँधे,लगे पेड़ हे पार।
कमल खिले चारो मुड़ा,सादा लाली झार।

धान पान होथे बने,सबके खेती-खार।
छान्ही भर बगरे हवय,तुमा-कोंहड़ा नार।।

सीधा बड़ मनखे इहाँ,हवय गवँइहा ठेठ।
ना फेशन के सँउख हे,ना हे धरना सेठ।।

ना कोनो छोटे हवय,ना बड़का हे जात।
मया प्रेम सद्भाव ले,रहिथे सबो जमात।।

घर कुरिया छोटे भले,हिरदे जघा अपार।
मिल जुर के रहना इही,मोर गाँव के सार।।

दोहा

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

Sunday 3 September 2017

ग़ज़ल

फा़इलुन ,फा़इलुन,फ़ाइलुन,फाइलुन

हर गली शाम तक आज दुबकी दिखी

धूप  भी  छाँव  के  संग  बैठी  दिखी

ये अमा अब उजालों में खोती दिखी

झोफड़ी में कोई रौशनी सी दिखी

जाने क्या  कह  दिया है  किसी  ने  उसे

उनकी आँखो में जो आज तल्ख़ी दिखी

जिन्दगी फिर से थमने लगी थी यहाँ

चींटी फिर एक दीवार चढ़ती दिखी

मुद्दतों  बाद ये शह्र बेखौफ़ है

राह चलती हुई आज लड़की दिखी

अमा-अँधेरा

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

छत्तीसगढ़

Saturday 2 September 2017

दोहा


हिन्दी से ज्यादा अभी,है अंग्रेजी दौर।

अंग्रेजी जो बोलता,उसके सर पर मौर।।

अंग्रेजी माध्यम बना,है बहुतेरे स्कूल।

ए,बी,सी,डी पढ़ रहे,हिन्दी भाषा भूल।।

याद नही है अब हमें,हिन्दी वाले अंक।

ये कैसा दुर्भाग्य है,लगा सोच पर जंक।।

हर घर में बनता दिखे, पास्ता नूडल आज।

स्वाद भूल देशी रहे,फास्ट फूड का राज।।

बाप बाप अब ना रहा,डैड नया है नाम।

मॉम बनी  माता  ,सभी, देखो  मेरे  राम।।

हाय बाय अब चल रहा,नमस्कार ना होत।

ब्रो,सिस् कहने लगे , सब  अंग्रेजी  होत।।

सर से लेकर पाँव तक,गाँव शहर के लोग।

संस्कृति पश्चिम का करे,बिन सोचे उपभोग।।

चले गए गोरे सभी,हिन्द हुआ स्वतंत्र।

फिर उनकी संस्कृति हमें,बना गई परतंत्र।।

दोहा

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़