Sunday 3 September 2017

ग़ज़ल

फा़इलुन ,फा़इलुन,फ़ाइलुन,फाइलुन

हर गली शाम तक आज दुबकी दिखी

धूप  भी  छाँव  के  संग  बैठी  दिखी

ये अमा अब उजालों में खोती दिखी

झोफड़ी में कोई रौशनी सी दिखी

जाने क्या  कह  दिया है  किसी  ने  उसे

उनकी आँखो में जो आज तल्ख़ी दिखी

जिन्दगी फिर से थमने लगी थी यहाँ

चींटी फिर एक दीवार चढ़ती दिखी

मुद्दतों  बाद ये शह्र बेखौफ़ है

राह चलती हुई आज लड़की दिखी

अमा-अँधेरा

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा

छत्तीसगढ़

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