क्या समाज ने लोभ का,पहन लिया है खाल।
अब तो 'बंदर-बांट' कर , सभी उड़ाते माल।।
ये समाज है फल अगर , नेता जी हैं बीज।
दोनों को ही चाहिए , एक्स्ट्रा वाला चीज।।
नेता बगुला सा बना , चले चाल पर चाल।
मीन कहाँ समझे भला ,मुफ्त माल का जाल।।
दीन-हीन अश्पृश्य जन, मन में करें विचार।
जाति,धर्म का खेल ही , नेता का व्यापार!।।
जो हो झूठा आदमी , करे स्वार्थ की बात।
एसों को पहचान कर ,मारें 'मत' की लात।।
सब अवगुण को त्याग कर ,करे देश से प्यार।
एसे नेता खोजकर , भारें भारत भार।।
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा