Monday 26 September 2016

पानी बूंद अमोल हे.....
विधा-------दोहा
मात्रा       १३/११
पानी बूंद अमोल हे, राखव एखर मान।
बूंद बूंद बचावव जल, बात समझलव जान॥

खरचा कर देव पानी, जनम जनम भरमान।
अब धरती ले पानी ह, कति ले आवय जान॥

पानी रहत खूब करे ,छकल छकल तंय जान।
भर भर लोटा नहाये, अब अंजली असनान॥झलशजभी

कपड़ा लत्ता बरतन ल,छिन छिन मांजय सान।
पानी बऊरे अइसे, जइसे पर घर जान॥

टेड़ा नल झुख्खा हवय,नल बन गे हे बांझ।
माथा धर पछतात हे,गुनव ज्ञानी सुजान॥

सब रूख रई काटेव, आंखी मूंद नदान।
जीव जंगल नंदागे हे, तब फरकत हे कान॥

रूख लगावव कोरि त हे, तभे धरा के जान।
अभी ले समझव बात ल, झन बनव ग नादान॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

गरेर आवय मारय बिजरी गिरय पानी,
संझाकुन चुहत हवय घर के ओंरवानी
किसनहा मन के मन गदगद होवत हे,
आगे खेती किसानी के दिन संगवारी॥

भैंसा गाड़ी बईला गाड़ी रात रेंगत हे,
टेक्टर वाले मन ह बनिहार खोजत हे।
सब किसनहा के एके ठन बुता हवय,
घुरवा के खातू पलोवय खेत अउ बारी॥

बबा दाई हर परसा डारा लुवत हावय,
कोठार बारी के परदा पलानी ओईराही ।
झिपार बर बनय राहेर काड़ी के झिपारी,
खपरा लेवागे छान्ही ओईराय पारी पारी ॥

छेना खरसी झिंटी चिरवा सकलात हवय,
कोठा म पईरा बने कस कस धरात हवय।
मालमत्ता के नवा जुन्नी करत हे किसान,
कहे किसनहा गिरतिस पानी धारी धारी ॥

सुसईटी के खातु घर घर धरावत हवय,
कोठी ले सुघर बिजहा मन हेरावत हवय।
डांड़ी लेवागे नांगर पजावय घर लोहारी,
गोड़ा तरी के रांपा अउ हेरागे हे कुदारी ॥

मेढ़ मेर करत हवय उलट के चिनहारी,
डबरा खोचका के हे आगे पाटे के पारी।
कांटा खुंटी ल बिनव आवा खेत चतवारी,
सावन के पहिली जतन लव खेती बारी॥

अंकरस जोताय बने भूंईया ह खेतीहर,
थरहा लईहरा के करत हवय तईयारी।
सावन भादो किसनहा भरय किलकारी,
कहे सम्मत होही तभे छुटातिस उधारी॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok


बहर -मुतकारिब मुसम्मन सालिम
अरकान -१२२/१२२/१२२/१२२
रदीफ़-है
काफ़िया-अर

ज़रा सी झड़फ का हुआ ये असर है,
सियासी कहर ने जलाया शहर है।

कि बांटा गया है जहर हर किसी को,
कंहां खो गया जो अमन का शहर है।

खुदा खो गया राम भी अब नही है,
लगाकर सफ़ेदा लिखा यह शहर है।

नमी आंख की कौन देखे यहां कब,
न तेरी जरूरत न मेरा शहर है।

किसी ने किसी पर छुरा है चलाया,
कि "हेमंत" दंगों का यही वह शहर है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ ok

बहर -रजज मुसद्दस सालिम
अरकान-२२१२/२२१२/२२१२
काफ़िया-आन
रदिफ़-है

पैसा यहां/सब का खुदा/भगवान है,
कोई नही/सच का बता/पहचान है।

बैठी गरी/बी घर बिका/है इक तरफ़,
है इक तरफ़/कोई बना /धनवान है।

सौ बार जल/जाते दिये/जल ना सका,
हर दम चली /आती ख़फा/तूफ़ान है।

बाजार मे /सब बेचकर /आया चला,
अब जिस्म है/टूटा हुआ/अरमान है।

देते हमा/रा हक बता/वो इस तरह,
जैसे रहा/हम पर अदा/एहसान है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok










१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

                                        
परींदे सर/हदों की सब/दिवारें तो/ड़ उड़ते हैं
यहीं हम है/वतन पर भी/सियासी बा/त करते हैं।

जमा है खू /न का कतरा/किसी मां के/दुपट्टों पर
अमन की रा /ह पर पहरा/अंधेरी रा/त करते है।

खुदी को अब/ खुदी से आ/ज हम बदना/म करते है
किसी की नफ/रतों को हम /शराबी जा/म करते है।

जिसे अपने /हरम की जां/हिफ़ाजत भी/नही आया
रगड़कर आं/ख ये अब भी/मलालें शा/म करते है।

उजालों ने/कभी हमको/नज़र भर भी/नही देखा,
गरीबी के/मकानो पर/कहां ये चां/द करते है।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

बहर-रमल मुसम्मन सालिम
अरकान-२१२२/२१२२/२१२२/२१२२
काफ़िया -अन
रदीफ़   -पर

देख तो कैसे मिटा कर ये जवानी इस वतन पर,
सर कटाना याद करेगी ये ज़माना इस वतन पर।

मौत के संग से खुली थी देख आंखे इस तरह नम,
देख ले वह आज भी है रत जगा सा इस वतन पर।

ख़ौफ़ कब था मौत का जो अब रहेगा ऐ सितमगर,
शीश कट जाते यहां हरदम हजारों इस वतन पर।

फ़ूल जाती इस धरा पर शेरनी मां तेरी छाती,
मां चरन पर ये सिपाही मर मिटे जब इस वतन पर।

मौत से यारी निभाने खून से रंग दूं  कफ़न भी,
आरज़ू है हर जनम मेरा यही हो इस वतन पर।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

धक धक करते सीने से देखो,
कोई निज प्राण निकाले जाता है।
मेरी मां की धड़कन से बतलाओ,
कोई कश्मीर निकाले जाता है॥

आबादी बर्बाद हो रही है जवां,
कोई केसर कैसे यहां खिलाएगा।
चीनारों के जंगल से कोई हत्यारा,
दिन रैन चैन उड़ाने आमादा है॥

सिन्धु की अंतरमन यही कहती है,
सुन लो भारत के वीर सपूतों तुम !
उखाड़ फेंको इन पत्थर बाजों को,
जो कशमीर को नापाक बनाता है॥

चेनाब रोती है झेलम रोती है देखो,
डल वुलर और झील नागिन रोती है।
हिमालय की आंखो पर देख आंसू ,
ये वादी -ए- जन्नत सिहरा जाता है॥

बहकावे मे न आना नौजवानों तुम,
ये अपनों के नही होते तो तुम्हारे कैसे?
इनको मतलब है बस खून बहाने से,
गंगा जमुनी तहज़ीब इनको न भाता है॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok


श्रृंगार की कविता
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मधु मिलन की बेला,
शहद तार तार हो रहे हैं,
व्याकुल दोनो अंतर्मन,
पीयूष अधरों से पी रहे हैं।

देंह दहक दहक रहे हैं,
सांसें उधड़ बून कर रही है,
जब चक्षु मिले ह्रदय तल से,
अंबर धरती पर बरस रहे हैं।

उमंग भर आई है जीवन मे,
विरही दिन बिसर गये हैं,
सच्चा प्रेम का अर्पण पाकर,
मुरझाई यौवन तर हो रहें है।

प्रेम के अद्भुत आंगन में,
पायल झुमके खनक गये हैं।,
कंगन चूड़ी बिंदीया गज़रा,
सब पिया पिया ही बोल रहे हैं।,

जब जब बांहों की वरमाला,
प्रियतम प्यारे मुझ पर वारे हैं,
मधुशाला की हाला बहती है,
अधरों पे प्याले रस घोल रहे हैं।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा।
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

पहिली पूजा हे भोर,लंबोदर जय तोर,
बिगड़े काम बनईया, काज बना दे मोर।

दाई पारबती हवय,ददा हे शिवा तोर,
कातिक नाव के एकझन,भाई हे जी तोर।

दांत बड़े हे एके ठन,पेट हवय बड़ तोर,
चढ़े मुसुक के सवारी,चार भुजा हे तोर।

एक हांथ म शंख धरे हे,दुजे कमल हे तोर,
तीजे हाथ भोग धरे,चौथा अशीष तोर।

सुपा कस हे कान बड़े,केंश ह लहरी तोर,
रिद्धी सिद्धी चंवर कर,सेवा करथे तोर।

फूल चघे पाना चघे,फल चघे हवय भोग,
लाड़ू तोर परसंग के,उदर ह भारी तोर।

अगियानी ल गियान दे,हर रोगी के रोग,
पाये सुख धान धन हे,जेन जय करे तोर।

रचना(दोहा१३/११)
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok


दोहा
(13/11)

मोर माटी बंदन करंव,चरन अंचरा पखार,
खावत हमन बने बने ,मया म तोर अपार।

तोर छाती ले उपजे,धान गंहू भरमार,
चना राहेर तींवरा,भरय कोठी हमार।

निकले नंदिया झोरकी,रूख राई पहाड़,
हरा हरा चारा चरे,गाय बछरू कछार।

आनी बानी भरे हे,धरती खनिज भंडार,
लोहा तांब कोईला ,चूना अगम अपार।

कोरी कोरी तिहार म,किसीम के पकवान,
सबके अपन धरम करम,हवन भाई समान।

गांधी अंबेडकर लागे ,देश सपूत महान ,
भगत राजगुरू जनमे,बन के हे भगवान।

कोनो साड़ी ल पहिरे,कोनो हे सलवार
कोनो धोति पहिरे हे,कोनो ह चुड़ीदार।

हिंदू मुसा सिख्ख हवय,भारत के पहिचान
बौद्ध जैन ईसाई,म हवय धरम हमार

ऊंच निच ल टोरके हे,बने हवय संविधान,
सब ल एके अधिकार हे,सबके अपन बिचार।

इंहा अनेकता म हवय ,एकता के भरमार,
शीश नवे मोर धरती,तोर बर बारंबार।

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

अरकान
२१२२/२१२२/२१२२/२१२२
बहर-----
रमल मुसम्मन सालिम
तर्ज---
ला ल ला ला

आजकल के नौजवानो का बहाना राम जाने
सीखना ये काम करना कब करेंगे राम जाने।

आंख पे है बाल बिखरे रोज बनठन मस्त
निकले,
ये बहकना अब भला बंद कब करेंगे राम जाने।

शौख है तो भी रखे हद मे कदम अपने मुहाने,
मयकशी को छोड़ना बंद कब करेंगे राम जाने।

टूट जाते हैं उक़ूबत के हलक पर सादगी भी,
बेचना ये ज़ाबिता बंद कब करेंगे राम जाने।

आज कम है कल ज़ियादा आग लग जाती कंही है,
यूं जलाना अब शहर बंद कब करेंगे राम जाने।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

२२१२/२२१२/२१२२

दुश्मन सल़िकेद़ार जब घर पे आया,
उसने छुरा इस बार दिल पे चलाया।

जां से बढ़कर पा लिया था जिसे मै,
ये इश्क़ तो अब जान लेने पे आया।

उस पार दरिया के खुशी का शज़र है,
परिंदा हजारों ख्वाब ले उड़ के आया।

दौलत मुहब्बत शोहरत आरज़ू सभी
ये फ़ालतू क्या क्या सितम ले के आया।

शाईर ने बस एक खता क्या किया तो,
पूरा शहर घर गाल़ियां मढ़ के आया।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok








बहर-रजज मुसद्दस सालिम
२२१२/२२१२/२२१२
तर्ज- ला ला ल ला

मैं चार सिक्के भी बचा पाया नही,
तूफां बताकर तो कभी आया नही।

मजबूरियां क्या क्या रही होंगी तभी,
ये मौत भी खुलकर अभी आया नही।

बस चाहता था दो घड़ी सावन रहूं,
बरसात तो इस साल भी आया नही।

बांटा करो तुम राम को बांटो खुदा,
इसके सिवा कुछ काम तो आया नही।

एक चांद पर एतबार ही था बस हमे,
वो भी मगर छत पर कभी आया नही।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok




२१२२/२१२२/२१२२
बहर--रमल मुसद्दस सालिम

गांव की तुम आब़दाना याद रखना,
नीम बरग़द और सावन याद रखना।

चांद तारे आसमा गर मिल भी' जाये,
तुम हमेशा घर गरीबी याद रखना।

जा रहे हो तुम अगर घर छोड़ कर तो,
देख मां की चार बातें याद रखना।

रोज बूढ़ी आंखें' तकती राह होंगी,
अधमरी सी जान वो तुम याद रखना।

लील जाती है शहर ईमान सब कुछ,
शाम को निकलो मगर घर याद रखना।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok




पहले मारा
आज भी मारा
शायद कल भी ये काम करे
आओ हम दुश्मन को ट्वीट करें
कहना सुनना
बतियाना सबसे अच्छा
तोप गोलों पे ज्यादा खर्चा
उन जैसे गोलियां क्यूं बर्बाद करें
आओ हम दुश्मन को ट्वीट करें
हुए शहीद
सत्तरा जाने आज
पठान कोट भी तो है याद?
फिर जोश खरोस की बात करें
आओ हम दुश्मन को ट्वीट करें
समझौता
बस है यही इकलौता
रास्ता प्रेम व्रेम का बढ़िया!
बात वार्ता मे मग्न दिन रात रहें
आओ हम दुश्मन को ट्वीट करें
सवा करोड़ आबादी
देख रही तक कर आंखे
सौ सुनार एक लुहार की
वही पुरानी बातें वो सौ बार करे
आओ दुश्मन को हम ट्वीट करें

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok


समीक्षार्थ--------

आल्हा छंद
"वीर रस"

धीर देख के हमरो भैया,दुशमन समझे हमे लचार।
उठा जो तलवार रे भैया,काट दियो गरदन हजार।।

जब जब कोनो दुश्मन आए,फरके जावे भुजा हमार।
खून देंह के डबकन लागे,जैसे खौले लोह अंगार।।

तुम करगिल भी हार चुके हो,युद्ध हुआ जो चौथी बार।
अब साहस भी ना ही करियो,मंहगा पड़ जाये इस बार।।

मत छेड़ो भारत के धरती,बात मान लो आज हमार।
सुत पूत कोई नही बांचे,जब दियो गरज के ललकार।।

साहस बचे नही अब जानो,है छदम युद्ध को तैयार।
वादियों मे पैसा बांट के,युवकों को करते गुमराह।।

जेकर देश मरद न जनमे,छुप के करै उही तो वार।
नाक कान छिदवा के हिजड़ा,कर लय औरत के सिंगार।।

आल्हा छंद
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

१२२/१२२/१२२/१२२(अरकान)
बहर -मुतकारिब मुसम्मन सालिम
काफ़िया-अर
रदिफ़-है.         Okk

घरों में ग़रीबी बसी इस क़दर है,
न आटा न रोटी न होती बसर है।

छप्परें घरौंदे उजड़ते शज़र है,
किस तरह हुआ ये पुरानी शहर है।

न दिन को सुकूँ चैन रातों नहीं है,
कि बर्बादियों में बता क्या क़सर है।

नही फूल रास्ते कंटीली डगर है
गुज़रती नही दौर कैसा सफ़र है।

वक्त ने दिखाया सही राह हेमंत,
किसी ने वक्त को दिखाया नज़र है।

ग़ज़लकार
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

















हाईकू ५/७/५

       १
बारिश नही
खेत पर सूखते
त्रास किसान

        २

मेघ रूठे तो
उजड़ गई धरा
है अवसन्न

          ३

ताल सूखे से
जल जन्तु अनाथ
है खिन्न खिन्न

           ४

देंह तपती
जल रहा भूतल
घोर अनल

             ५

उड़ तुरंग
अनुग्रह हे मेघ
हर विपन्न

            
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


हाईकू--छत्तीसगढ़ी

         १
जाड़ के घाम
सईकमा के बासी
बने सुहाथे

           २

पैना के भात
अंगाकर के रोटी
जी ल जुड़ाथे

             ३

पताल देशी
धनिया मिरचा म
बने खवाथे

             ४

ममहा गे जी
साग गली खोर म
मेथी छंवागे

              ५

जिमी कांदा हे
मही चर चर ले
लार बोहागे

                 ६

पुटू फरे हे
बबा खोजे परे हे
संझा पहागे

                   ७

बटकर हे
गोलईंदा भांटा हे
भाजी रिसागे

                     ८

काला रांधौ मै
छेना झिंटी सिरागे
बबा गुस्सागे

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़