Tuesday 29 December 2020

बरसात के दोहे

मोर  मगन हो नाचता,खिले डाल अरु पात।

आया  लेकर  मेघ  है, सुन्दर  सी  बरसात।।


धरा  भींगती  जा  रही , उड़ती  सोंधी  गंध।

महक  उठा वातावरण,अच्छा  यह अनुबंध।।


पावस  तुझमें  प्राण है! ,क्या हैं तुझमे राज।

अलसाया  संसार भी , चुस्त हुआ है आज।।


सोये  सोये  बीज  के , बदले  हुए मिजाज।

झटपट  बिस्तर  बाँध के,जाग उठे हैं आज।।


बन  के  दुल्हन सी सजी, जैसे हो मधुमास।

वसुधा पर लिपटी हरी, साड़ी बनकर घास।।


सुमन  गुच्छ झुमका बने,कानो में अनमोल।

पायल   की झन्कार  सी ,लागे झींगुर बोल।।


केश  बने   बादल   घने , दर्पण लागे ताल।

पेड़ों  की  कंघी   बना , धरा   सँवारे  बाल।।


मेंढक  की  आवाज   से , हुई  सुरमई रात।

जैसे   दुल्हन  की अभी , आई  हो  बारात।।


विरह काल  से जूझतीं , खोज रहीं थी नाथ।

नदियाँ साजन पा गईं,पा कर जल का साथ।।


उफन   रही   मद-प्रीत में ,इतराती वह खूब।

जल   को   बाँहों  मे भरे ,गई  प्रेम  में  डूब।।


सावन की  बरसात  से, बदला है  हिय  हाल।

टकला पर्वत खुश हुआ,आये अब कुछ बाल।।


पर्वत  की  उर  से  लिपट ,छेड़े  अद्भुत राग।

झरने   बहने   हैं  लगे , बनकर  जैसे  नाग।।


हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़





























Friday 23 October 2020

रोला

एक  हाथ  में  जाम,  एक में भगवत गीता।

ऐसे  में अब  सोंच, कहाँ  बच पाए सीता।।



रावण का ही भूत,बसा है जब जन-जन में।

मर्यादा  के राम, नजर  क्यूँ  आए  मन  में।।



मीरा  का यह देश,मगर कब दिखतीं मीरा।

गए  सूर  को भूल ,और खो  गए क बीरा।।



लोभ क्रोध के गीत,खुशी से हर दिन गाए।

दया प्रेम सद्भाव,कहाँ अब किसको भाए।।



ठगनी  माया   संग , सभी ने रास  रचाया।

भूल  गए  हैं प्रेम, दिखे बस सुंदर  काया।।



नारी  का  सम्मान , धर्म  हो  सबका भाई।

मन का रावण मार,साफ कर लें मन-काई।।



रचना

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़







Wednesday 13 May 2020

बाल कविता




काले    काले   प्यारे   बादल।

सबके  राज  दुलारे   बादल।।


जल्दी गड़  गड़ करते आओ।

धरती की तुम प्यास बुझाओ।।


सूरज  की  किरणें  तपतीं हैं।

सड़कें धू-धू  कर जलतीं हैं।।


पीले   पत्ते   पके   पके   से।

पेड़  लगे  हैं  थके  थके  से।।


नदी  ताल  सब  सूखे  सूखे।

प्यासे   प्यासे  भूखे   भूखे।।


बेचारी   चिड़ियाँ  हैं  प्यासी।

छाईं  हैं  सब  तरफ उदासी।।


चौपाया  अब  काँपे  थरथर ।

छायाँ कहाँ रही अब सरपर।।


बाहर जाओ  लू  का  खतरा।

घर  पर  है  दादा  का पहरा।।


हम  बच्चों  की आफत आई।

घर   से   निकलें   कूटे  माई।।


बालकविता

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा(नवागाँव)

छत्तीसगढ़








ग़ज़ल

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रोज़   मरना  है  रोज़  जीना  है

ज़िंदगी  भर  यही  तो  होना  है


ज़िंदगी  इक फटी कमीज़ तो है

सीना  है  और  फिर पहन ना है


बँट  गई   हैं  ग़रीबों  में  कम्बल

ठंड   की  तो  महज  बहाना  है


आग  चूले  पे अब  नही जलतीं

ये  सुना  है    वो  वहशियाना है


लुटता  ही  तो  गया  है मेरा सब

बच  गया  जो  वो भी  नकारा है



हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा   छत्तीसगढ़





 




Sunday 26 April 2020

कोरोना पार्ट-वन

कोरोना पार्ट- वन


कोरोना इस पार है ,और भूख उस पार।


बेचारी  जनता  फँसी,दो धारी तलवार।।




मरना सब में तय हुआ,दीन हुए लाचार।


आँत्र क्षुधा की चीख से ,गई गरीबी हार।।



भूखे प्यासे तप्त मन,और समय की मार।


रोटी  रोजी  थी  नही,रुकना  था बेकार।।



विकट दशा कारुण्य मय,देखा था संसार।


अफरा-तफरी थी मची,जाने को घरबार।।



जैसे जिसको जो मिला,निकले हाथ पसार।


निज घर की दहलीज थी,प्रामाणिक आधार।।



कोई पैदल भागता,कोई आटो कार।


रिक्शा पे कोई चला,लादे घर परिवार।।



हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)

छत्तीसगढ़















Friday 24 April 2020

कोरोना के चटपटे दोहे

लाकडाउन के चटपटे दोहे...


पाँव  अभी  बहके नही, मन पर रखें लगाम।

कुछ दिन गृहणी बन करें, घर के सारे काम।।



प्रेम  प्रदर्शन का  समय,अति उत्तम श्रीमान।

घर  की विद्या सीख कर , पाएँ अद्भुत ज्ञान।।



खाली  रहना  व्यर्थ  है,  त्याग सभी आराम।

कर  पत्नी   सेवा सतत  , मिलता चारो  धाम।।



झाड़ू पोंछा कर सुबह , बरतन को ले माँज।

बच्चों को नहला धुला, दे काजल भी आँज।।



पुरुष  जान यह बात भी, पत्नी काज महान।

कपड़े धो कर सिद्ध कर,खुद को तू हनुमान।।



पत्नी  बच्चों  को  खिला , खस्ता  पूरी भेल।

दाल  भात  सब्जी  बना , रोटी  ले  भी बेल।।



दोहे  गाकर  प्रेम  के , कर  पत्नी  गुणगान।

तू  अदना  है  जान  ले , पत्नी  हीरा  खान।।



घर  में  रहकर  सीख ले ,सुन्दर सुन्दर काम।

कोरोना  के  फेर  में ,  कमा-धमा  ले नाम।।



हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा( नवागाँव)

छत्तीसगढ़