Sunday 29 October 2017

दोहा

कानन झुरमुट खोजता,हवा हुई  भयभीत।

काँप गई है फिर धरा,लहर चली अब शीत।।

रात ठंड  से  मर  रही, सुबह काँपती  रोज।

सूरज ओढ़े कोहरा ,करे धूप  की खोज।।

सर्दी में करता मजा, कहाँ  उसे अनुताप।

धुआँ धुआँ तालाब है,निकल रहा है भाप।।

आता  सूरज  रोज ही, उठकर  पहले ताल।

गरम गरम जल में उतर,होता फिर वह लाल।।

बद से  बदतर  हो रहे, मौसम  के  हालात।

शीत ओढ़कर घाँस भी, रोज  बिताती रात।।

दोहा

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा