मोर मगन हो नाचता,खिले डाल अरु पात।
आया लेकर मेघ है, सुन्दर सी बरसात।।
धरा भींगती जा रही , उड़ती सोंधी गंध।
महक उठा वातावरण,अच्छा यह अनुबंध।।
पावस तुझमें प्राण है! ,क्या हैं तुझमे राज।
अलसाया संसार भी , चुस्त हुआ है आज।।
सोये सोये बीज के , बदले हुए मिजाज।
झटपट बिस्तर बाँध के,जाग उठे हैं आज।।
बन के दुल्हन सी सजी, जैसे हो मधुमास।
वसुधा पर लिपटी हरी, साड़ी बनकर घास।।
सुमन गुच्छ झुमका बने,कानो में अनमोल।
पायल की झन्कार सी ,लागे झींगुर बोल।।
केश बने बादल घने , दर्पण लागे ताल।
पेड़ों की कंघी बना , धरा सँवारे बाल।।
मेंढक की आवाज से , हुई सुरमई रात।
जैसे दुल्हन की अभी , आई हो बारात।।
विरह काल से जूझतीं , खोज रहीं थी नाथ।
नदियाँ साजन पा गईं,पा कर जल का साथ।।
उफन रही मद-प्रीत में ,इतराती वह खूब।
जल को बाँहों मे भरे ,गई प्रेम में डूब।।
सावन की बरसात से, बदला है हिय हाल।
टकला पर्वत खुश हुआ,आये अब कुछ बाल।।
पर्वत की उर से लिपट ,छेड़े अद्भुत राग।
झरने बहने हैं लगे , बनकर जैसे नाग।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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