Wednesday 6 April 2016

गज़ल

दो चोटी की छोटी सी किलकारी है,
घर द्वारे आंगन मे इक फुलवारीं है।

गुड्डे गुड़ियों संग इतराती परीयोँ सी,
हंसते खिलते झूमते इक फुलवारी है।

घरौंदे पैर पर रेत की परवाह नही करती,
वो लहरों पर हंसती इक फुलवारी है।

मम्मी पापा की नकचढ़ी दुल्हन प्यारी है,
दादा दादी की वो इक बसंत फुलवारी है।

इठलाकर बलखाकर सज़दे मे रोती है,
तेरी मेरी बेटी गुलाबों की फुलवारी है।

घर से जब ससुराल डोली पर गुजरती है,
हेमंत तब भी बेटीयां  मां बाप की फुलवारी है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

जिंदा लाशों के बीच अब रहा नही जाता,
हैवानियत के शहर मे अब रहा नही जाता।

इंसानियत बेचकर तमाम लोग दागदार है,
खुदगर्जी के शहर मे अब रहा नही जाता।

मतलबी फरेबीयों की यहां बड़े बड़े दुकान है, मजहबीयों के शहर मे अब रहा नही जाता।

यहां लोग खरीदे  बेचे जाते है किमत देकर,
जल्लादों के शहर मे अब रहा नही जाता।

बिगड़ी है तस्वीरें जो और बिगड़ती नजर है ,
तिश्नगी शहर मे अब रहा नही जाता ।

दिल उब गया है हेमंत इस शहर की दास्तां मे,
बेवफाई के इस शहर मे अब रहा नही जाता।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिरा
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

फागुन आगे रे

रंग रस फागुन आगे रे,
मन मऊहा बउरागे रे।
गांव शहर बाजे नंगारा,
फगुआ के मउसम आगे रे॥

मन मतंग मानय नही,
मया के रस चुचुआगे रे।
कोन बईरी कोन संगवारी,
जम्मो जुर सकलागे रे॥

कोन डोकरा कोन डोकरी,
लईका जवान भऊजाई रे।
रंग बरसत हे पिचकरी ले,
उड़त गुलाल सतरंगी रे॥

जरही जी होली अवगुन के,
बारे बर हे मन के दाग रे।
हिरदे ल हिरदे जोर के संगी,
झुमत नाचत रंग बगरावव रे॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला बलौदाबाजार
भाटापारा

गज़ल

बहते हुए दरिया के दो मुहाने हो गये,
ठहरे हम नासमझ वो सयाने हो गये।

ये भी इक रंग है मोहब्बत के फ़साने का,
ख़बर नही चला कब हम बेगाने हो गये।

जिनके ठंडी छांव मे बहारों का डेरा था।
आज वो नीम और पीपल पुराने हो गये।

इस दौर कहां देखूं नूर-ए-ख़ुदा तुमको,
मोहब्बत को गुज़रे हुए ज़माने हो गये।

दिल का हरम सराय सा लगता है "हेमंत",
दिल से दिल्लगी तक लाखों बहाने हो गये।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छ ग.

गज़ल

मै कहां कोई किसी से गिला करता हूं,
दुश्मनों को भी प्यार से मिला करता हूं।

फटेहाल ये पुराने कपड़े फेंके नही जाते ,
उम्मीदों के धागों से इसे सिला करता हूं।

मारने वाले जल्दी कर कहीं मर न जाऊं,
तेरे आने के ख़बर से कहां हिला करता
हूं।

गुज़र न जाएं बहारें इस कदर तु तु मै पर,
खुद को बचाकर खुद से मिला करता हूं।

के मुद्दतों से बिखरा है दर दिवार "हेमंत"
कब किसी के खैरातों को जिला करता हूं।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

मयखाने पर लोग जाया करते है,
खुशी और नही गम भाया करते हैं।

बस पुरानी लकीरें कुरेदने के लिए,
हर शाम जाम छलकाया करते हैं।

जीने को मोहब्बत का गम बताकर,
नेमत -ए-खुदा यूं पूरी जाया करते हैं।

सारी उमर उनको बेवफा कह कह कर,
अपने ही बेवफाई को छुपाया करते हैं।

ये टीस है वफ़ा या है गरूर मोहब्बत का,
चौराहे प्यार के किस्से सुनाया करते हैं।

मै भी जगा हूं रोज रातो को बहुत "हेमंत"
पता नही ये किसके सरमाया करते हैं।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

कोई गज़ल को शेर शेर को गज़ल कहता है,
इन अदावतों को कोई पीढ़ी कोई नसल कहता है।

ये जो दरिया है जो बहती है समन्दर की तरफ,
मिलन कोई या बिछूड़न हो कोई सजल कहता है।

हम बड़े ही दिलकश आए है सकूं-ए-यार मे,
इसे कोई खरीफ तो कोई धान की फ़सल कहता है।

कोयल ने क्या कूक भर दी अमराई के बागों मे,
परवाने जल गये तो कोई दिवाने असल कहता है।

जुड़े जो तार किसी दिल के तरन्नुम तक "हेमंत"
आशिक लुटा हुआ कोई ज़रा सम्हल कहता है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

देख तो ये सूनापन कैसे होती है,
खाट पर बूढ़ी आंखे कैसे रोती है।

शहरी चेहरे इतना बेदर्द मतलबी,
गांव मे उधड़ी सांसे कैसे रोती है।

मुड़कर न देखा फिर गांव उसने,
बचपन के झूले म्यारे कैसे रोती है।

छप्पर उजड़े उजड़े घर की दहलीज़ें,
तुमको आंगन की बाहें कैसे रोती है।

नीम छांव के गुल्ली डंडा भूल गया,
देख भंवरे संग कंचे कैसे रोती है।

सावन मे बरसातों मे तेरा इतराना,
गलियों मे कागज की नावें कैसे रोती है।

लौट आ पल भर के लिए ही हेमंत,
तुझ बिन तेरे अपने सायें कैसे रोती है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

ये कौन खंज़र चला रहा है,
रिश्तों पर खून लगा रहा है।

चराग जो हवावों मे जलते रहे,
कौन फूंक मारकर बूझा रहा है।

ये कैसी घड़ी आन पड़ी या खुदा,
मेरा और तेरा शहर बता रहा है।

मज़हब परस्ती का इस तरह कहर है,
कोई भारत कोई हिंद बना रहा है।

सियासत के बाज़ार मे देखो तो,
वो अपने खोंटे सिक्के चला रहा है।

खुद को खुद ही परेशा करने वाले,
अपना ही घरबार जला रहा है।

सैयाद इस दौर -ए-जहां भी "हेमंत"
उड़ते परीन्दों को सता रहा है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

वफ़ा मै आज जब तुमसे मिला हूं,
मै खुद से मुद्दतों बाद मिला हूं।

ये खिड़कियाँ रोज ही खुलती थी,
पर मै आज रोशनी से मिला हूं।

चमन मे हर फूल से याराना है मेरी,
पहिली आज मै गुलाबों से मिला हूं।

मोहब्बत हर बख़त ईनायत नही होती,
मै तंग रास्तों के मुसाफ़िरों से मिला हूं।

ये घर ये गली ये शहर इनसे भी,
मै मिला तो किसी चौबारे पर मिला हूं।

मै गया था अमीरों के शहर मे जब,
पर मै गरीबों के गरीबी से मिला हूं।

मै खुद रोता हूं उनके आंसू पर  "हेमंत"
ज्यादातर बहारों पर खियाबां से मिला हूं।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

गज़ल

अभी जाओ नींद किसी घर मे सो जाना,
पर यहां अच्छा नही अभी तेरा आना।

मुझे जी लेने दो इस कयामत की रात,
जीते जी अच्छा नही अभी तेरा आना।

मेरी कुछ मोहलतें सुपुर्द कर दो अभी ,
जागूं  तो अच्छा नही अभी तेरा आना।

किरदारों का मुखौटा पहन लेने दो अभी,
नाटक पर अच्छा नही अभी तेरा आना।

कुछ सांसे कुछ लम्हा चुका लूं "हेमंत"
कर्ज पर अच्छा नही अभी तेरा आना।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़