Tuesday 29 November 2016

ग़ज़ल

१२२२/१२२२/१२२२
बहर-हजज मुसद्दस सालिम

खुशी पर गम जदा यूं रंग नही रखते,
खियाबां मे नाशादी रंग नही रखते।

चिरागों बांट दो अपनी खुशी सारी,
हमेशा दायरा अपना तंग नही रखते।

दिलों मे प्यार की हो बातें अब सारी,
जेहन मे याद रखना रंज नही रखते।

बहुत प्यारा है ये गुलशन जरा देखो,
अमन के राह मे हम जंग नही रखते।

नसीहत है कभी असफ़ार पर निकलो,
हवा की दुश्मनी तब संग नही रखते।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

ग़ज़ल

१२२/१२२/१२२/१२२
बहर--मुतकारीब मुसम्मन सालिम

कंही से उजाले जमी पर तो लाओ,
उठाकर सितारे जमी पर तो लाओ।

अभी रातें सोकर जगी तो नही है,
कभी मेरे सपने चुरा कर तो लाओ।

है माना हुनर है तुम्हे प्यार का पर,
सराफ़त से कोई खुदा घर तो लाओ।

ये आंखे बहुत कुछ बयां कर रही है,
अगर ये मुहब्ब़त है खुल कर तो लाओ।

ये परिंदे कहां उड़ के जायें बताओ,
कि आस्माँ से कोई शज़र घर तो लाओ।।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़




बहरे रमल मुरब्बा सालिम
२१२२/२१२२

धरती फिर से कांप उठे है,
मुर्दे फिर से जाग उठे है।

सांसे धड़कन आंखे सहमी,
फिर से दानव जाग उठे है।

मिठी बातों पर ना जाना,
सारे नेता जाग उठे हैं।

घर मे फांका है मगर वहां,
सर पे बोतल नाच उठे हैं।

बेटी रोती है दुबक कर,
घाव सारे बोल उठे हैं।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

१२२/१२२/१२२/१२२

हिफाजत करे जो मिटाता है क्या,

जलाकर दिये वो बुझाता है क्या।

वो सोता है मगर आंख लगती नही,

गुनाहों का पैकर  डराता है क्या।

धुआं ही धुआं है अभी तक यहां,

किसी ने शहर फिर जलाया है क्या।

इशारों इशारों मे उसने जो कहा,

यूं भी प्यार कोई जताता है क्या।

वो जाकर मुआँ लेट गया कब्र पर,

यूं भी कोई दोस्ती निभाता है क्या।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़





बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
२१२२/१२१२/२२

रात के आखिरी शमा तक दे,

साथ देना है तो वफ़ा तक दे।

जब तबीयत को आजमाना हो,

बस दुआ ही नही दवा तक दे।

जान लेना है तो ले ले

पर जरा मौत मे मज़ा तक दे।

प्यार मे यूं अंधा नही होते,

मै गुनहगार हूं तो सजा तक दे।

तू अगर दिल से चाहता है तो,

प्यार भी दे हमे बला तक दे।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्सूर
१२२/१२२/१२२/१२

नशे मे वो कुछ भी बका करता है,

मुआँ बातें सच सच कहा करता है।

सलीके से मांगा करो तुम कभी,

शराबी बड़ा दिल रखा करता है।

यूं कहते हैं सब लोग वो पीते है,

वो गम मे खुशी को जिया करता है।

सुबह शाम से रात तक बैठा है,

वो रोता है रो कर  हंसा करता है।

वो बीमार सा लगता नही है मगर,

जो किस मर्ज की अब दवा करता है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
२१२/२१२/२१२/२१२

प्यार मे फिर सहारा नही मिलता है,

इस नदी का किनारा नही मिलता है।

मै बसर तो हो जाऊं किसी कोने मे,

उसके दिल मे इजारा नही मिलता है।

देख कर दूर से लौट आया हूं मै,

हर जमी को सितारा नही मिलता है।

या खुदा माफ कर तेरे दामन मे भी,

मां के जैसा शकीना नही मिलता है।

इस शहर के हजारों अदायें मगर,

गांव का वो नजारा नही मिलता है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
२१२/२१२/२१२

जान कर हारता हूं वहाँ'

इश्क मे बावरा हूं जहाँ।

माँ बचाकर रखी है मुझे,

जलजला है खड़ा हूँ जहाँ।

है दुआ की तरह आज भी,

माँ गई है गया हूँ जहाँ।

पोंछकर अपने आँसू सभी,

वो हँसी है हँसा हूँ जहाँ।

वो तो मुझमें ही जीती रही,

माँ मरी है मरा हूँ जहाँ।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़








बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आखिर
२१२/२१२/२१२/२

रहनुमाई की बरसात है क्या।

फिर चुनाओं के हालात हैं क्या।

झुठ भी बोलो अगर तो सही है,

ये नेताओं के शहरात है क्या।

आग है इस पुराने शहर मे,

फिर दंगो जैसा हालात है क्या।

चीखें फिर से सुनाई दे कोई,

बहनो के लूटे अस्मात है क्या।

लोग कितने मजे से यहाँ हैं,

ये शहर के हवालात हैं क्या।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


इस पार भी इस गांव के उस पार भी,

बाजार मे बिकने लगे है प्यार भी।

मै कैसे कह दूँ बेवफा उनको कहो,

इस दौर मे ये प्यार भी दस्तूर भी।

मै गैरों से डरता नही माना मगर,

अब बदलने पाला लगे हैं यार भी।

ये दुश्मनी की आग जलने मत देना,

इसने जलाया है कई घर बार भी।

सुन चांद तुझको भी अकेला देखा है,

क्या मेरे जैसा है तेरा तकदीर भी।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़








 

२१२२/१२१२/२२

जा रहे हो उजाले ले आना,

आसमा से सितारे ले आना

इस शहर मे खराब मौसम है,

गांव से गुल बहारें ले आना।

घर बहुत सूना सूना है कब से,

घर जो आओ खिलौने ले आना।

यूं सुना है वो देता है सबको,

उनके दर से दुवायें ले आना।

जाते हो बेटियों के घर जो तुम,

उनकी सारी बलायें ले आना।

ग़ज़ल
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
२२१२/२२१२/२२१२

गम के हवा को वो हवा कर देती थी,

बीमारी मे मां झट दवा कर देती थी।

ए चांद क्या मालूम भी होगा तुझे,

गालों पे मां तेरा टिका कर देती थी।

जब भी पसीने से नहाकर आता मै,

मां अपनी आंचल से हवा कर देती थी।

डर था उसे मै जल नही जाऊं कहीं,

मां इस लिए लड़ियां जला कर देती थी।

जब रात भर घर मै नही आया कभी,

दरवाजे पे मां रतजगा कर देती थी।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


२१२२/१२१२/२२

हमने अपने ही पांव काटे है,

इस सड़क पर के छांव काटे है।

वो परींदा मजे से रहता था,

उनके तो सारे ख्वाब काटे हैं।

दौड़ना चाहती है हर बेवा,

पर ये दुनिया ने पांव काटे है।

वार जिसने किया हमे छुपकर,

उनके तो सारे दांव काटे है।

जानकर जा रहे शहर तुम भी,

उस शहर ने ही गांव काटे हैं।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार
भाटापारा
छत्तीसगढ़

१२२२/१२२२/१२२२

कभी तो वक्त ये होगा हमारा भी,

अभी तो रात है होगा उजाला भी।

कमाई सारी तो हमने लगा दी है,

फसल मे इश्क के होगा ईजाफा भी।

ये बिछड़न का जो मौसम है गुजर जाये,

हसीनों का यहीं होगा इशारा भी।

वो पीते हैं तो पीते ही रहें मयकश,

उठा बोतल गुजर होगा हमारा भी।

ये मिट्टी तो बनाती है मिटाती है,

यहां से जल्द ही होगा रवाना भी।

समन्दर है दगाबाजों का ये दुनिया,

भँवर मे देखना होगा किनारा भी।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़


१२२२/१२२२/१२२२

बड़ी चालाकी से मकसद बनाते हो,

कभी मजहब कभी सरहद बनाते हो।

जलाकर घर धरम के नाम पर तुम तो,

सियासत के बड़े परिषद बनाते हो।

बता किस बात की मिलती सजा हरदम,

हमे तुम तीर का तरकस बनाते हो।

सियासत मैली है ये जानते हो तो,

बताओ क्यूं इसे मसनद बनाते हो।

वो बच्चा है उसे बचपन देना चाहिए,

अभी क्यूं तुम उसे कातिल बनाते हो।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

२२१२/२२१२/२२१२

दिल बेचने भी यार आया कर कभी,

इस इश्क के बाजार आया कर कभी।

दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,

इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।

माना सितारों से बहुत है प्यार पर,

जुगनूओं को घर पे बुलाया कर कभी।

दुनिया अमीरों के मुआफ़िक है मगर,

कुछ घर गरीबी के दिखाया कर कभी।

ये रास्ते बेशक तरक्की के हैं,

पैमाना पर इनका बताया कर कभी।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

१२२२/१२२२/१२२२

अगर ये जिन्दगी इक मौतखाना है,

तो बेशक जिन्दगी को आजमाना है।

अगर तुम चांद हो तो चमकते रहना,

मेरी आंखो मे भी मां का उजाला है।

सुनो महलों से कद के नापने वालों,

है मिट्टी का मेरा पर आशियाना है।

ये दरिया भी समन्दर पे फिदा है क्यूं,

जहाँ दरिया को जाकर डूब जाना है।

बहुत पैसे जमा कर डाले उसने तो,

नही जाना के इक दोस्त बनाना है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार
भाटापारा
छत्तीसगढ़q