Tuesday 21 July 2015

तभे हमर गांधी बबा के सुराज आही(छत्तीसगढ़ी)

बोट के कीमत पहिचाने ल परही,
जम्मो मनखे ल बोट डारेल परही।
छंटनी करना हे जोजवा बोजवा ल,
तभे हमर गांधी बबा के सुराज आही॥

तभे हमर गांधी .......

अपढ़ हेंकड़हा मन ह नेता बनथे,
जीत के छानही म पड़ पड़ होरा भुंजथे।
अईसनहा दोगला मन ल भगायेल परही,
चुनयी म इंकर मन के मंजा बतायेल परही॥

तभे हमर गांधी........

साड़ी बांटथे कतका घर घर जाके ,
हमर बहिनी माई मन ल रिझाए बर।
दारू कुकरा बांटे टुरा पिला ल पटाय बर,
अब इंकर सप्पड़ नई परना हमन ल चाही॥

तभे हमर गांधी.......

जेन मेर पाही फलर फलर ओसाही,
तरिया नंदिया गली खोर सुधर जाही।
इस्कुल, दैहान ,पक्की सड़क बन जाही,
अब लबरा फलर्रा मन ल तिरियाये ल परही॥

तभे हमर गांधी......

नोनी बाबू बोट डरयीया मन सकलावव,
बने पढ़े लिखे गुनवान मनखे ल जितावव।
जेन हमर समझय दुख सुख पीरा परेशानी,
अईसनहे मनखे ल तिलक लगाय ल परही॥

तभे हमर गांधी बबा के सुराज आही.....

रचना
हेमंत कुमार मानिक पुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

Wednesday 15 July 2015

भीगा है तन (गज़ल)

भीगा है तन दिल की अगन जाती नही ,
अब बरसात दिल की अगन बुझाती नही।

गुजरते गये हैं हर पन्ने अतीत के लम्हों से,
अब भरी बरसात मे बरसात जैसे आती नही।

मै भी हूं तू भी है इस जंहा के किसी कोने मे,
अब तकदीर किसी चौराहे पे जैसे मिलती नही।

यू तो रोज चल रही है हवांये दर्द-ए-मंजर का,
अब दवा भी इश्क को जैसे रास आती नही।

न आये ये बरसात  मे मोहब्बत की याद "हेमंत"
अब न ये इश्क जैसे जलती नही न बुझती नही।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

उम्मीद तो कर रेला है बाप(हास्य व्यंग्य)

वेतन बढ़े भूखे पेट न मरें,
हो मोटरसाइकिल अपनी भी,
जिस में बैठ हम जमकर घूमें,
उम्मीद तो कर रेला है बाप!!!

बच्चों को कभी बीबी को घुमायें,
थोड़ा सैर सपाटा मे जायें,
दूर हो जाए कड़की हमारी,
जब शाली भी अपने घर आए।
     उम्मीद तो कर................

झुठे झुठे वादे होते हैं बड़े,
मन के लड्डू खाते हैं बड़े,
सपना अब सपना ही रह जाएगा,
शाला इनकमटेक्स हमारी भी कटे ।
         उम्मीद तो कर........

औरों को देख जलन सी होती है, ताने सुनकर बीबी से कान पकती है,
रोज खीचखीच मे टाईम मेरा जाता है,
कभी भर पेट घर मे खाना मिल जाए ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

अफसोस जताने आ जाना(हिन्दी)

कुछ कसर रह न जाए बाकी,
ईतना मुझे तड़फा जाना,
दो फूल लेकर मेरी कब्र पर,
अफसोस जताने आ जाना ।

    अफसो स जताने......

वो रंगीन शामे शहर की,
कुछ यादें मेरी ले आना,
खून से  लिखा था जो खत मेरा,
आकर तुम लौटा जाना ।

अफसोस जताने.........

जरा बालों को बिखरा आना,
कुछ चेहरे पर मायूसी ले आना,
वर्ना लोग पूछेंगे तुमसे सवाल,
झुठा ही सही कुछ अश्क बहा जा ।

अफोसस  जताने आ जाना.....

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

यंहा मन के आंसू कौन देखता है(हिन्दी)

मन ही मन पीड़ा सहते है,
हंसते दिखते पर रोते है,
आंखों को सूखा रखना पड़ता है,
यहां मन के आंसू कौन देखता है ।।
                 यहां मन के आंसू.........

दर्द बताने की वजह नही दिखती,
कोइ मीत नही जो ह्रदय टटोलती,
इस चंचल संसार मे नही मिला कोई,
पढ़ता जो अंतरमन की वेदना।।
              यहां मन के आंसू............

सूर्ख जर्द आंखें टकटक देखती,
खूली आंखों मे निंन्द्रा भटकती,
मन मे रात भर बरसते मेघा,
आंसुओं को भी रातभर छटपटाना पड़ता है ।।
       यहां मन के आंसू कौन देखता है ।

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा

वो सोंधी महक मिट्टी की अभी ताजा है(हिन्दी)

बरसात की बूंदों का मिट्टी पे टपकना,
तालाब मे नंगे होकर फिसलना,
हाथ पांव मे मिट्टी लगाकर साबुन बनाना,
वो सोंधी महक मिट्टी की आज भी ताजा है ।

बचपन मिट्टी से ही चहका था,
हर गली मिट्टी ही सनता था,
गांव के आंगन मे मिट्टी से खेलना,
वो मिट्टी के घरौंदे आज भी ताजा है  ।

चोट लगे तो मां मिट्टी का लेप लगाती थी,
मिट्टी की ठंडक कितना राहत पहुंचाती थी,
मिट्टी से ही तो जीवन अंकुरित,
मिट्टी से तिलक लगाना अभी ताजा है ।

मै भूला नही  उस मिट्टी के अफसाने,
जिस मिटटी मे चंचल  बचपन  गुजरा,
हे भारत के माटी अर्पण तुम पर सब कुछ,
अभी मेरी भुजाओं का संबल ताजा  है ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार -भाटापारा
छत्तीसगढ़

पुलिस वाला गुण्डा(हिन्दी)

पुलिस वाला ट्रफिक मे देख रहा था खड़ा,
कोई गाड़ी एसी आए जिससे माल मिले बड़ा,
कह रहा था शहर के लौंडे को मत भेजना भगवान,
अगर आ भी जाए तो उस पर नही दूंगा ध्यान ।।

दो चार गांव से अनपढ़ अनाड़ी भेज देना,
माल मिलता है बढ़ीया उनसे कयी गुना,
मेरी झोली आज भर देना भगवान,
खर्च कर दिए वसूली आज टी आई को भी है देना ।।

इतने मे हेलमेट पहने भिन्डी वाला गुजरा,
कहा रोककर हेलमेट तो ठीक जरा लाईसेंस दिखाना,
लाईसेंस देखकर कहा टायर क्यों है पुराना,
सौ दे वरना कोर्ट जाकर चालान पटाना ।।

डरा सहमा आदमी क्या करता बेचारा,
निकाल सौ का नोट हो गया रवाना,
पुलिस वाले इतना बेदर्द क्यों हो रहे हैं,
जनता का रक्षक ही भक्षक हो रहे हैं ॥

आवारा लड़के तीन तीन सवारी गुजरते है,
पर उनके कान मे जूं तक नही रेंगता,
सीधा सादा ईंसान आज  परेशान बने हैं,
पुलिस वाला गुंडों के अवतार बने है ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

पी लिया गम (हिन्दी)

पी लिया गम सीने मे पत्थर रखकर,
जी लिया जिंदगी तुझसे जुदा होकर ।

अब न आना तु राहे वफा मे धड़कन,
बेहोश ही रहने देना इस कायनात मे।

जाने दे दुर किस्मत इस शहर से,
कोई घर तलाशने दे वीराने मजार मे ।

बीते जमाने की मुरीद न बन जाउं कही "हेमंत" ।
डर लगता है उस यादों के बहार से ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

रोम रोम मेरा अबीर बन जाए(हिन्दी)

रोम रोम मेरा अबीर बन जाए,
जीवन प्रीत से इतना भर जाए,
आज होरी के रंग छूट रहे हैं,
कोई आकर मेरा मन रंग जाए ।

प्रेम के पक्के कोइ रंग लाए,
धुल जाए वह रंग न आए,
डारो रंग रसीया एसो रंग,
हर दिन मेरा फागुन बन जाए ।

नगाड़े, फगवा गीतों की बौछार,
धुल जाए मन का मैल अपार,
भाई-चारे का उत्सव बन जाए,
चलो हम ऐसा रंग पंचमी मनाएं ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ी

दौरे जंहा अब बदला बदला लगता है(गज़ल)

दौरे जहां अब बदला बदला लगता है,
अब तो परछाईयों से भी डर लगता है ।

तमाम रिशतों की परख कर ली है,
अपने भी आजकल पराया लगता है ।

वो शहर ढुंढते है मोहब्बत की,
जंहा हर शख्स मुस्कुराया लगता है ।

आजकल फिजां मे  बागों की महक नही,
अब फूलो ने खिलना छोड़ दिया लगता है ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा

राजनैतिक कटाक्ष

क्या मुफ्ती को मुफ्त मे मिल गई है बीजेपी,
छोड़े जा रहा है अलगाववादी आतंकी ।

क्या होगा इस वतन का अब मुफ्ती,
तेरे इरादों मे नजर आती नही कोई नेकी ।

क्यों नतमस्तक हुए जा रही है बीजेपी ,
सत्ता लोलुपता मे क्या फंस गई बीजेपी ।

और इतना होते हुए क्यों चुप है सरकार,
क्या इसी दिन के लिए मिला था जनाधार ।

उठो जागो चुप्पी तोड़ो बीजेपी सरकार,
समर्थन वापस लेकर मुफ्ती को कर निराधार ।

आज के राजनैतिक परिदृश्य पर मेरा निजी कटाक्ष....

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

वो महल आज भी झोफड़ो को चिढ़ाते है(गज़ल)

जाने किस वक्त से रीत निभाते है,
वो महल आज भी झोफड़ों को चिढ़ाते है।

गुजरे लम्हो और आज मे फर्क क्या ह ?
कोई भूखा है तो कोई गुलछर्रे उड़ाते हैं ।

गरीबी को इस्तेमाल करना अमीरों की फितरत,
स्लम पर बनी पिक्चर यहां कऱोड़ो कमाते है ।

कोई एसा वक्त नही जो गरीबी बदल दे,
यहाँ कागज़ी नाव मे वादों के सफर होते है ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

पुरूषों के खयाल पर(हिन्दी)

पुरूषों के खयाल पर भारी पड़ना,
यूं ही नही तुम मैदान छोड़ना,
आज संकल्प कर लो हे नारी!
अब किसी से पीछे नही रहना ।।

बहोत जुल्म सहे तुमने पीड़ा,
तेरा नाम न हो अब अबला,
पुरूषों की तुच्छ विचारों को,
अब कर देना है तुम्हे खात्मा ।।

अपना तुम स्वाभिमान सजाओ,
कर्मो से अपना नाम बनाओ,
जो कहते नारी को पुरूष के हाथो का मैल,
उठ खड़ा हो सबक खीखाओ खत्म करो ये खेल !

सदा वन्दनीय नारी की भूमिका,
जिस घर नारी नही वह घर नही होता,
हम पुरूष नारी के पूजा की प्रसाद है,
उनके ही गर्भ से उपजे हम औलाद है ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

Monday 13 July 2015

वो होली भी क्या खूब थी(व्यंग्य)

वो होली भी क्या खूब थी,
कंडे लेकर जब जाते थे,
आरती कर होलिका की,
अपना अवगुण जलाते थे ।

अब तो दारू लेकर आते है,
खुद पिते और पिलाते है,
कितनी गंदे करते हम काम,
जो होलिका दहन मे भी नहीं जल पाते है।

घर घर दारू बंटती है,
और हम मजे से पिते है,
मां बहन आ जाए कोई,
गालियां देने से नही चूकते है ।

ये क्या होली हम मनाते हैं,
अपनी मर्यादा सब बिकते है,
एसी होली से तो अच्छा है,
हम होली नही अगर मनाते है ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

समाज कहती जिसे विधवा नारी(हिन्दी)

समाज की संकीर्ण सोच पर बली,
तड़फती बिलखती पर कुछ न कहती,
क्या कसूर उस अभागन का !
समाज कहती जिसे विधवा नारी ।

जीवन संघर्ष करती  वह जीती,
और समाज के ताने सहती,
जिने का उसे अधिकार चाहिए,
उसकी अपनी मर्जी का संसार चाहिए ।

बहोत कचरा फैला है मन मे,
आवो आज बदल दें सोच,
उस अबला नारी को दें,
नई सोच की नई दिशा ।

विधवा शब्द मिटा दें धरती से,
उसको भी दें प्यार दुलार,
बहोत सह लिया सामाजिक प्रहार,
वो देख रही  खड़ी उड़ने को तैयार ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

न जाने वो कितने घर (गज़ल)

जिसे अदना कहकर  फिजूल समझा,
वो खोंटे सिक्के आज काम आए।

कूड़े कहकर डाला जिसे गढढे,
आज वो मिट्टी को महका आए।

कहता रहा जिसे बेवफा गली गली,
उनकी दुआ पर हम घर सजा आए।

कौन कहता है पत्थर लगता है,
न जाने वो कितने घर बसा आए ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

Sunday 12 July 2015

अभिव्यक्ति की परिभाषा(हिन्दी)

अभिव्यक्ति की परिभाषा,
रंग रूप से कंही अछूता,
है विचारों की श्रखंला,
जिसे आज हम कहते भाषा ।

राष्ट्र एकता मे निर्वह,
वो कुंठित नही है उर्वर,
जीवन मे प्राण भरती,
जिसे आज कहते हम भाषा।

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम,
एक बिंदु पर आकर मिलते,
जिस प्राणों ने सीचा संबंध,
जिसे आज कहते हम भाषा।

विविध भारती विविध बोलियां,
पर रहती सब की अभिलाषा,
अनेकता मे एकता है देश मेरा,
जिसे आज  कहते हम भाषा ॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

मेरी कहानी आईना की तरह(हिन्दी)

मेरी कहानी आईना की तरह ,
चेहरा उल्टा बन जाता है,
जब भी हां हां बोलूं,
कमबख्त ना ना बन जाता है।

जब भी सुर लय ताल धरूं,
राग बेसुरा बन जाता है,
कल्पना ओं  की दौड़ मे रहता आगे,
यथार्थ कुछ और ही बन जाता है।

कोंपलें छूने की गर कोशिश करूं,
वो कांटे बन जाती है,
जब भी समझना जाहा जीवन तुझे,
और भी तु उलझन बन जाती है ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

आज भो वो मेरे कब्र मे लड़ने आते है(गज़ल)

मेरे दुश्मन ने मेरे जनाजे को देखकर सुकूं लिया,
पर मेरे अजीज़ से कफ़न भी न मयस्सर हुआ।

मुझे दुश्मनों से ज्यादा तकलीफ नही,
डर लगता है वफादारों की बेवफाई से।

कभी कभी दुश्मन भी दोस्त से अच्छे होते है,
जो हमारी गलतियों को सरे आम पढ़ते है।

दुश्मनी उसनें बहोत खूब निभाया "हेमंत"
आज भी वो  मेरे कब्र पर लड़ने आते हैं ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

अबीर गुलाल बरसते रंग(हिन्दी)

अबीर गुलाल बरसते रंग,
फगवा गीतों की राग सतरंग,
फागुन की बौछार पड़ी है,
नाचे सारा जगत छम छम ।।

नवा सूर नव ताल उमंग,
विहवल प्रेमी तरसे मन मिलन,
खेतों के मेड़ों पर सज रही,
टेसू के फूलों का अभिनव रसरंग ।।

है उन्मादित प्रकृति बसंत,
झूम रहे सब फागुन के संग,
रस राग घोलती तन मन मे,
सब रंग रंगे होली के संग ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

बिना शिक्षक संसार अधूरा(हिन्दी)

कोई रास्ते से पत्थर उठाता है,
कोई खेतो मे फसल उगाता है,
कोई सीमा पर करता रखवाली,
कोई समाज पर अर्पण है ।।

कोई संगीत सीखाता है,
जीने के गुर बतलाता है,
सजा कर सात सूरों को,
दुख सूख के गीत सुनाता है ।।

वो संदर्भ बहोत ही न्यारा है,
जिसने जीवन निखारा है,
रास्ते अलग हो देश प्रेम के,
पर सबने देश संवारा है ।।

पर एक शिक्षक सबसे अलग है,
सभी रास्तों का जनक है,
वो गुणों के खान का हीरा,
बिना शिक्षक के संसार अधूरा ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

वतन को लूटते रहे (हिन्दी)

वतन को लूटते रहे जब भी मौका मिला,
तिजोरियां भरते रहे जब भी मौका मिला।
वक्त रहते जरा जाग भी जाओ,
वतन पे अपनी जां भी तो लुटाओ  ।।

मोहब्बत और दर्द इस मिट्टी मे है,
मिट्टी को भी तो गले से लगाओ।
दोबारा जनम लेने का मौका मिले यहां,
ऐसा काम भी तो करके दिखाओ ।।

जमाने तरसते रहे और हम खुशी पायें,
वो सरहद पे मरते है और हम कमाए।
ये वफा नही बेवफाई ही तो है,
जो शहीदों के खून से अपना घर सजाएं ।।

रचना
हेमन्त कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

जिंदगी के सफर का मजा लिजिये(गज़ल)

जिंदगी के सफर का मजा लिजिये,
हंस हंस के खुशी बांट लिजिये।

राहें मुश्किलों से भरा है तो क्या,
कदम कदम जिंदगी का मजा लिजिये।

बहोत हो गया मंदिरों मे आना जाना,
अब तो भूखे को खाना खिला लिजिये ।

सफर मे बहोत दूर जाना है मुसाफ़िर,
खुदा को मनाना जरा सीख लिजिये।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

दिल मे उम्मीद(गज़ल)

दिल मे उम्मीद जगाये रखना,
वो पुरानी खिड़कियाँ खुली रखना ।

वो आ जाए कहीं भूलकर भी घर,
सजाए इक गुलस्ता गुलाब रखना ।

वो बहार न जाने कब बरस जाए,
आंगन मे सजाए दुआ रखना ।

खुदा की रहमत न जाने कब आ जाए,
अपना दामन जरा पाक साफ रखना ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

नादान परिन्दे(हिन्दी)

उड़ने की ख्वाहिश जरा सम्हल के,
आसमां न तेरा है और न मेरा  ।

माना ऊचाईयां छूने की आदत है तुझे,
एक पेड़ पे घोसला भी बना जरा ।

नादानियों के किस्से बहोत बहोत हैं,
जरा होशो ए हवाश मे किस्तीयां चला  ।

ए नादान परिंदे बेखबर न उड़ना,
वर्ना तेरा आसमां होगा न जमीं होगा ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा

दुल्हा घोड़ी पे बैठे(हास्य)

दुल्हा घोड़ी पे बैठे मुस्कुरा रहा था,
जिंदगी के आखरी पल सजा रहा था,
अब न मिलेगा हंसने का मौका उसे,
इस लिए पल पल खुशीयाँ मना रहा था ������

मंडप मे पहुचते ही खामोश हो गया,
मोबाइल से डाटा डिसकनेक्ट हो गया,
समझ गया हाथ मे वरमाला देखकर,
कहा प्रभु-मेरी जिन्दगी मे शाम हो गया������

तब से आजतक चुप चुप ही रहता है,
अब वो आवारापन  न जाने कंहा रहता है,
कहता है समय नही मिलता जरा भी,
अब घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुंचता है।
��������������

रचना
हेमन्त कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

जिंदगी की डगर बहुत कठिन थी(हिन्दी)

जिंदगी की डगर बहोत कठीन थी,
फूल कहीं नही कंटीली झाड़ियाँ जरूर थी,
बचपन हमने जिया है या नही,
आज भी ईक प्रश्न चिन्ह लगता है ।।

गरीबी का चादर ओढ़ हमने सोया है,
सपने मे हि अमिरी का मजा लिया है,
जब भी नींद खुली सपनो को जगाये रखा,
उसी उबड़ खाबड़ रास्तेसे आखिर पक्की सड़क तक जाना था ।।

जिंदगी से बहोत कुछ सीखा है,
डूबते सूरज की लालिमा भी देखा है,
पर आज ठोड़ी बहोतजो  सफलता पायी है मैन,
वही उबड़ खाबड़ रास्तों से ही सीखा है ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

यह समाज कितना संवेदना हिन है(हिन्दी)

यह समाज कितना संवेदना हिन है ,
अमीर कपड़ों को वार्डराब मे सजाने के शौकीन हैं,
यहां कितने गरीब बिना चीथड़े के रह गया,
अईयो मोदी जी का सूट खासमखास हो गया ।।

मोदी जी के तन को जब से छू लिया,
वो लाखों के सूट करोड़ों का हो गया,
खून मे सनी वर्दी की क्या अवकात,
अईयो मोदी जी का सूट खासमखास हो गया ।।

कोई जवान ईलाज के लिए चीखता रहा,
शहीदों की वर्दी कूड़ेदान मे सड़ता रहा,
हिन्दुस्तान की किस्मत हाय रे फूट गया,
अईयो मोदी जी का सूट खासमखास हो गया ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

अभी अभी उनकी धर्म पत्नी गुजरी है(हिन्दी)

जीवन भर का साथ अब टूटी है,
अभी अभी उनकी धर्म पत्नी गुजरी है,
ये खयाल भी कितना भयावह है !
जो वृद्धावस्था को एकांकी कर देता है ।

बेटे, बच्चे और पत्नी के साथ खुश हैं,
बेटी ससुराल मे कर्तव्य निर्वाह  रही है,
एसे मे हमराही का छोड़ जाना,
मन को कितना पीड़ा पहुंचाता हो गा ?.....

वास्तव मे वृद्धावस्था एक व्यापक सोच है,
जिसे इन्सान केवल वृद्ध होने पर सोचता है,
हमे इस सोच को बदल देनी चाहिए,
जिसके कगार पर वास्तव मे हमें भी जाना है !!!!!!!!

रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़