Wednesday 13 May 2020

बाल कविता




काले    काले   प्यारे   बादल।

सबके  राज  दुलारे   बादल।।


जल्दी गड़  गड़ करते आओ।

धरती की तुम प्यास बुझाओ।।


सूरज  की  किरणें  तपतीं हैं।

सड़कें धू-धू  कर जलतीं हैं।।


पीले   पत्ते   पके   पके   से।

पेड़  लगे  हैं  थके  थके  से।।


नदी  ताल  सब  सूखे  सूखे।

प्यासे   प्यासे  भूखे   भूखे।।


बेचारी   चिड़ियाँ  हैं  प्यासी।

छाईं  हैं  सब  तरफ उदासी।।


चौपाया  अब  काँपे  थरथर ।

छायाँ कहाँ रही अब सरपर।।


बाहर जाओ  लू  का  खतरा।

घर  पर  है  दादा  का पहरा।।


हम  बच्चों  की आफत आई।

घर   से   निकलें   कूटे  माई।।


बालकविता

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा(नवागाँव)

छत्तीसगढ़








ग़ज़ल

2122 1212 22


रोज़   मरना  है  रोज़  जीना  है

ज़िंदगी  भर  यही  तो  होना  है


ज़िंदगी  इक फटी कमीज़ तो है

सीना  है  और  फिर पहन ना है


बँट  गई   हैं  ग़रीबों  में  कम्बल

ठंड   की  तो  महज  बहाना  है


आग  चूले  पे अब  नही जलतीं

ये  सुना  है    वो  वहशियाना है


लुटता  ही  तो  गया  है मेरा सब

बच  गया  जो  वो भी  नकारा है



हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा   छत्तीसगढ़