Thursday 18 January 2018

ग़ज़ल

2122/1222/1222

खत  पुराने   सभी   मेरा   जला  देना

वस्ल की हर तलब दिल से मिटा देना

मैं तो इक लम्हा था फिर रूकता कैसे

वक्त   की   बेवफ़ाई थी   भुला  देना

ज़िंदगी  में अगर ग़म भी आ जाये तो

ग़म में  रोना नही  बस  मुस्कुरा  देना

मै किसी भी के मज़हब का नही यारों

मज़हबी ना  कभी मुझको  बता  देना

गम नही मैं अगर मर भी गया तो सच

कुछ जला देगा वो कुछ तुम दबा देना

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

वस्ल-मिलन ,संयोग

Friday 12 January 2018

ग़ज़ल

पारए नाँ (1)तक उसे मिलता नही यारों

और उसकी हसरतें मरता नही यारों

नश्शए सह्बा (2)अभी चढ़ता नही तो क्या

गुजरा है दिन रात तो सोया नही यारों

है फ़रामुश जो कभी तो लौटकर आए

मेरा दिल अब भी कहीं भटका नही यारों

बादए गुलफ़ाम(3) ना हो तो मज़ा क्या है

ऐसी वैसी तो कभी पीता नही यारों

ये नक़ावत (4)है मेरी मैं दिल की कहता हूँ

औरों के जैसा मैं तो झूठा नही यारों

क़ागजों के साथ ही जीते रहे उमरा(5)

हमने बस इनकी तरफ देखा नही यारों

1-रोटी का तुकड़ा
2-शराब का नशा
3-एक गुलाबी शराब
4-शुद्धता,पवित्रता
5-धनवान लोग

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़