मुझे इस आग से बरबाद होना है
बला गर इश्क तो दो चार होना है
मेरे घर के चरागों ने गजब ढाया
ये तय है छप्परों को खाक होना है
कहाँ जाऊँ कहाँ पाऊँ सकूँ के पल
मेरा कोई नही हमदम न होना है
अँधेरों से गिला करता नही अब मैं
न जाने किस गली में शाम होना है
न दिल को समझे तो क्या क्या करे कोई
वो खुशबू है उसे आजाद होना है
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़