Tuesday 13 February 2018

दोहा गीत


संस्कृति भारत की रही,जग में सदा महान।

वेलेन्टाइन  डे  नहीं ,भारत  की  पहचान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

युगल जान लें बात ये,छोड़ें मिथ्या भान।

अपनी श्रद्धा भेंट करें,जननी को श्रीमान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

लज्जा तो है ही नहीं,ना दुनिया का भान।

बाँहों में  बाँहें  भरे, करते  अधर  मिलान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

मंत्र  मुग्ध  क्यूँ  हो रहा,धर अपना अज्ञान।

संगत  झूठे  प्रेम  की , समझो  रे  नादान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

प्रेम  समर्पण  त्याग  है, प्रेम  नाम  अवदान।

खुदी राम से सीख  लें, देश  प्रेम  का  ज्ञान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

बुद्ध  कबीरा  सा  बनें,जग की गौरव गान।

प्रेम  की  देवी  यहीं , मीरा  को  लें  जान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

रामानुज हो या भरत,जानो तुम बलिदान।

एक सिंहासन ना चढ़ा,संग ,एक भगवान।।

वेलेन्टाइन डे नही....

ये कलुषित संस्कार ना,मर्यादा की शान।

एसी रीति ठीक नही ,समझ मान सम्मान।।

वेलेन्टाइन  डे  नही , भारत  की  पहचान...

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा(नवागाँव)

















ग़ज़ल

22122212, 2212 ,2212
मुस्तफ़इलुन × 4

इक धुँध है कोई जो चली आती  है साया की तरह

अपने  ही  घर  में  हो  गया  हूँ  मैं पराया की तरह

कैसे अदा कर पाता माँ की प्यार की कीमत भला

ये  कर्ज वो  था जो  रहा  मुझमे बकाया की तरह

लोगों  नें जैसा  चाहा मुझको  वैसा मैं बनता गया

अक्सर रहा मैं जिन्दगी  भर इक नुमाया की तरह

सब  लोग  कहते थे बड़े  घर की  बहू थी वो मगर

जीती  रही  जो जिन्दगी  मन्हूस  आया  की तरह

पहचान  भी  पाए  नही  उसकी  सदा  को  देखिए

वो जो  मिलीं थी मुझको सेहरा में इनाया की  तरह

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)

                                 हेमंत

Monday 12 February 2018

हरिगीतिका




करिया दिखे तन साँप लटके,भूत मन हे संग मा।

बइठे हवय अरझट जघा जी,राख पोते अंग मा।।

हे  तीन  नैना  भाल  सोहय , कंठ नीला रंग मा।

गाँजा  धरे , हे  चाम  बैठे,रत हवय जी भंग मा।।


गंगा  धरे  हे अउ  जटा  मा, चाँद  सुघ्घर  हे दिखत।

कुन्डल सजे हे कान चमकत,भाल चाकर हे दिखत ।।

कंठी सजे गर मा हवय जी,राख  तन भर हे  दिखत।

पहिरे खड़ाऊँ गोड़ मा शिव,रूप  मनहर हे  दिखत।।


ग्यानी  हवय  ध्यानी  हवय ,देव  हे  विकराल  जी।

सुर,नर,मुनी हो या असुर तन,आय ओकरे लाल जी।।

भोला समझ झन भूल कर हव,पाप बर हे काल जी।

तांडव करय गुस्साय कटकट,नेत्र खोलय लाल जी।।


पीरा  हरे  रावन  असन  के , मोह  मा  बइहा  रहय।

ठोकर लगय जब पाँव मा भी,खुश हवँव मैं तो कहय।।

सिधवा निचट तो आय ओ हर,बेल पाना बर मरय।

जादा नही थोरिक मया मा, भक्त बर  हपटे  परय।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)

छत्तीसगढ़

Tuesday 6 February 2018

बसंत दोहा

अइलाये तन मा जगे, मनहर प्रीत अनंत।

सूट  बूट  पहिरे  बने, आगे ऋतु बसंत।।

डारा मन उलहोत हे, हरियर  हरियर  पान।

बुढ़वा बुढ़वा  रूख मन,होवत हवे जवान।।

मउहा के  खुश्बू  धरे , अपने  ओली  झार।

पगली  पुरवइया चले,लड़भड़ लड़भर खार।।

जंगल जंगल सुरमई, जंगल जंगल प्रीत।

आमा मउरे डार मा,कोइली गावय गीत।।

लाली  साफा  बाँध के, परसा ठाढ़े  पार।

कटही सेमरा देख तो,फूले हवय अपार।।

सर सर सर सर उड़त हे,जइसे उड़य गरेर।

रस चुहके बर  आय  हें, टेसू फूल मछेर।।

पिंयर पिंयर सरसो दिखे,पहिरे लुगरी मस्त

आनी बानी फूल खिले,महर महर ममहाय।

जइसे धरती मा सरग , चारो  मुड़ा  अमाय।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)



अरसात सवैया- सात भगण एक रगण


राम नही जिनके मुख, वो तन का कुछ मोल नही, सच बात है।

राम जपे नित जो ,हर कारण से कर पात ,तुरंत निजात है।।

है सब झूठ यहाँ ,बस राम कृपा, दुखिया मन को हरसात है।

राह सही मन राम जपो ,बस नाम यही भव, पार  करात है।।

––हेमंत कुमार मानिकपुरी

      भाटापारा (नवागाँव)

       छत्तीसगढ़