2212, 2212, 2212 ,2212
मुस्तफ़इलुन × 4
इक धुँध है कोई जो चली आती है साया की तरह
अपने ही घर में हो गया हूँ मैं पराया की तरह
कैसे अदा कर पाता माँ की प्यार की कीमत भला
ये कर्ज वो था जो रहा मुझमे बकाया की तरह
लोगों नें जैसा चाहा मुझको वैसा मैं बनता गया
अक्सर रहा मैं जिन्दगी भर इक नुमाया की तरह
सब लोग कहते थे बड़े घर की बहू थी वो मगर
जीती रही जो जिन्दगी मन्हूस आया की तरह
पहचान भी पाए नही उसकी सदा को देखिए
वो जो मिलीं थी मुझको सेहरा में इनाया की तरह
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा (नवागाँव)
हेमंत
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