करिया दिखे तन साँप लटके,भूत मन हे संग मा।
बइठे हवय अरझट जघा जी,राख पोते अंग मा।।
हे तीन नैना भाल सोहय , कंठ नीला रंग मा।
गाँजा धरे , हे चाम बैठे,रत हवय जी भंग मा।।
गंगा धरे हे अउ जटा मा, चाँद सुघ्घर हे दिखत।
कुन्डल सजे हे कान चमकत,भाल चाकर हे दिखत ।।
कंठी सजे गर मा हवय जी,राख तन भर हे दिखत।
पहिरे खड़ाऊँ गोड़ मा शिव,रूप मनहर हे दिखत।।
ग्यानी हवय ध्यानी हवय ,देव हे विकराल जी।
सुर,नर,मुनी हो या असुर तन,आय ओकरे लाल जी।।
भोला समझ झन भूल कर हव,पाप बर हे काल जी।
तांडव करय गुस्साय कटकट,नेत्र खोलय लाल जी।।
पीरा हरे रावन असन के , मोह मा बइहा रहय।
ठोकर लगय जब पाँव मा भी,खुश हवँव मैं तो कहय।।
सिधवा निचट तो आय ओ हर,बेल पाना बर मरय।
जादा नही थोरिक मया मा, भक्त बर हपटे परय।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा (नवागाँव)
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment