Tuesday 6 February 2018

बसंत दोहा

अइलाये तन मा जगे, मनहर प्रीत अनंत।

सूट  बूट  पहिरे  बने, आगे ऋतु बसंत।।

डारा मन उलहोत हे, हरियर  हरियर  पान।

बुढ़वा बुढ़वा  रूख मन,होवत हवे जवान।।

मउहा के  खुश्बू  धरे , अपने  ओली  झार।

पगली  पुरवइया चले,लड़भड़ लड़भर खार।।

जंगल जंगल सुरमई, जंगल जंगल प्रीत।

आमा मउरे डार मा,कोइली गावय गीत।।

लाली  साफा  बाँध के, परसा ठाढ़े  पार।

कटही सेमरा देख तो,फूले हवय अपार।।

सर सर सर सर उड़त हे,जइसे उड़य गरेर।

रस चुहके बर  आय  हें, टेसू फूल मछेर।।

पिंयर पिंयर सरसो दिखे,पहिरे लुगरी मस्त

आनी बानी फूल खिले,महर महर ममहाय।

जइसे धरती मा सरग , चारो  मुड़ा  अमाय।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा (नवागाँव)



No comments:

Post a Comment