Monday 18 July 2022

भ्रष्टाचार


लालच से पैदा हुआ ,आफिस है घर-बार।

तेज धार का मैं छुरा  ,नाम  है  भ्रष्टाचार।।


अधिकारी रिस्वत कहे,दुल्हा  जी उपहार।

लाला जी का ब्याज हूँ,चपरासी का प्यार।।


टेबल के नीचे कभी,कभी प्रसाधन कक्ष।

नोट  बड़े   आराम  से , लेने  में  हूँ  दक्ष।।


कभी सगुन के वक्त में,या अटके जब काम।

लोग  बड़े   अरमान  से  , लेते  मेरा   नाम ।।


जो  दे  वो  हो  कर्ज में,और घिरे अवसाद।

लेने  वाला  प्रेम  से , कहता  मुझे  प्रसाद।।


करतब  मेरा  देख  के , दुनिया  रहती दंग।

अनुकूलन  मुझमें बड़ा,ढल जाता हर रंग।।


सोने  चाँदी  का  महल ,रुपयों  का है सेज।

फिर भी शोषण से मुझे, रहता  नही  गुरेज ।।


झूठ- कपट की खाद से ,बढ़ता सालों-साल।

मुझे तनिक भी ना पचे ,सच्चाई का माल।।


हेमंत कुमार "अगम"

भाटापारा-छत्तीसगढ़