Tuesday 27 June 2017

पढ़व लिखव (दोहा)

पढ़व-लिखव (दोहा 13/11)

पढ़व लिखव लइका तुमन,इही तुहँर ले आस।
सब धन दौलत ले बने,सिक्छा हे जी खास।।

कलम काम के जी हवय,करव रोज अभ्यास।
सीख स्वर अउ ककहरा ,झटकुन होवव पास।।

गुणा इबारत  सँग करव , भाग  घटाना  जोड़।
सीख सबोझन लव गणित,आलस पन ला छोड़।।

कूदत नाचत जी पढ़व, रस्ता रेंगत  जात।
खेल खेल मा सीखना,आय मँजा के बात।।

आस पास के लव तुमन,चलत फिरत संज्ञान।
खेत  खार  बारी  सबो , देखव गउ  गउठान।।

पढ़ना लिखना हे बने ,मन मा राखव ठान।
गुनव कढ़व सब झन बनव,देश राज के शान।।

आज्ञाकारी तुम  बनव,रखव  बड़े के मान।
पढ़ना तब होही सफल,सही कहँव मैं जान।।

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा
छत्तीसगढ़

Sunday 25 June 2017

दोहा

गरज गरज बादर बने,पानी कस के ढार।

खेत खार छलके मुही,छलके तरिया पार।।

रूख-राइ जंगल कहे, दे  हम ला  उपहार।

हरियर हरियर हम दिखन,जिनगी हमर सवाँर।।

नान्हेंकन बीजा गड़े,करत हवय गोहार।।

धरती झटकुन भींज तैं,देखँव मँय संसार।।

मेचका धरती मा दबे,हे पानी के आस।

टरटों टरटों जी हमूँ,गा के करबो रास।।

मानुस तन थर्राय हे,पा के अब्बड़ घाम।

पानी के बिन हे परे,गाड़़ा भर के काम।।

नाँगर चलही खेत भर,पाबो कँस के धान।

जाँगर हमर सुफल करव,हे जलधर भगवान।।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Tuesday 13 June 2017

कविता

उमड़ घुमड़ करिया बादर,
पानी सरबर सरबर कर दे,
झुख्खा हे धरती के कोरा,
हे मेघ दूत तँय दया कर दे।

हे मेघ.....

उसनावत हे जम्मो परानी,
जग चिल्लावय पानी पानी,
अब दे फुहार नव जीवन बर,
झरर झरर बरसा कर दे।

हे मेघ......

जंगल के हरियाली बर,
चुरगुन के किलकारी बर,
बियाकुल चौपाया मन म,
शीतल नीर सरस भर दे।

हे मेघ.....

नँदिया तरिया खोचका डबरा,
गली खोर अमरइया नरवा,
जम्मो देखत हे आस लगाये,
सब ल पानी पानी कर दे।

हे मेघ....

बारी-बखरी ,खेती-किसानी,
सब ल चाही कस के पानी,
आँसू झिन किसान के बोहय,
अइसन तैं खुशहाली भर दे।

हे मेघ दूत तँय दया कर दे..

रचना
हेमंत मानिकपुरी
भाठापारा
छत्तीसगढ़