थी रवायत जो जमाने की पुरानी हो गईं,
बेटियाँ भी आज कल कितनी सयानी हो गईं।
है असर तालीम का गाँव में भी दिखने लगा,
घर की दहलीजों की बातें सब पुरानी हो गईं।
सरहदों पे तान सीना अब खड़ी हैं बेटियाँ,
वे नही अबला रही काली भवानी हो गईं।
कल तलक तफ़जी़ह करते बेटियों की लोग जो,
आज सारे इल्म उनकी पानी-पानी हो गईं।
हर तरफ उनका ही जल्वा है मुतासिर हो रहा,
बेटियों के पर जो निकले आसमानी हो गईंl
तफ़जी़ह-फजीहत इल्म-सिद्धांत
मुतासिर-प्रभावित
मौलिक व अप्रकाशित
ग़ज़ल
हेमंत कुमार
भाटापारा छत्तीसगढ़
8871805078