Tuesday 17 December 2019

दोहे

सूरज और जाड़ा


सूरज को समझा  रही,उसकी  अम्मी  बात।

जाड़े का दिन आ गया,मत करना अब रात।।


जब भी जाता काम पर,ढाँप लिया कर कान।

शीत लहर कितना चले, है तुझको यह भान।।


मोजा  स्वेटर  कुछ  नही, ना है बढ़िया शाल।

एसे  ही  तू  घूमकर , बना लिया क्या हाल।।


गोरा  चिट्टा  लाल  था ,  अब  लागे है  स्याह्।

देख  तुझे  इस  हाल में,मुँह  से निकले आह्।।


मै  तो  कहती  हूँ तनय ,कर लो तुम उपवास।

कुछ  दिन घर पर ही रहो,बैठ आग के पास।।


पर  सूरज  यह  जानता , कहाँ  उसे आराम।

हर स्वारथ को छोड़कर,करना है बस काम।।


दोहे.

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा








Friday 13 December 2019

मालिनी

पढ़ लिख कर यारों,ना समझ उन्हे आया।

सर  पर अब  भी है ,प्रेत  बन कौन माया।

तन-मन  पर  देखो , रच  गई  वासना  है।

हर  शहर  गली  में , साँप  से  सामना  है।

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Thursday 12 December 2019

कुंडलियाँ

मानव अब मानव कहाँ,हुआ बहुत ही नीच।
दया धर्म उपकार को,भूला आँखे मीच।
भूला आँखे मीच,उसे अब स्वारथ भाए।
करता वह अपराध,जहाँ मौका मिल जाए।।
सोंच समझ इंसान ,नही बनना है दानव।
कर लो अच्छे कर्म,बनो तुम फिर से मानव।।

आया बादल देखिए,लेकर वर्षा आज।
खेतों को पानी मिला,शुरू हुए सब काज।।
शुरू हुए सब काज,मगन हैं धरती सारी।
लिए खाद अरू बीज,खेत आये नर नारी।।
बैलों की आवाज,सभी के मन को भाया।
बोओं जल्दी धान,किसानी का दिन आया।।






Saturday 7 December 2019

मधुमालती


2212/2212

कहिए  अभी  क्या  हाल हैं,

सर  पे  बचे  क्या  बाल हैं ?

है  शुक्र   बस  इतना  हुआ,

अब  खेलना मत तुम जुआ।

ये  रोग   जिसको  भी लगा,

ये   बेच   दें   अपना  सगा।

पैसे   गए   फिर  मान  भी,

लेती   कभी   ये  जान  भी।

है  वक्त  अब  भी   ठान ले,

सच  राह  को  पहचान  ले।

माँ  बाप  की भी  सुन जरा,

उनका कहा  सच  से  भरा।

दे   त्याग   ओछे  कर्म  को,

पहचान   जीवन   मर्म  को।

है  कर्ज   तेरा   जो , चुका,

कर  मेहनत  मत सर झुका।

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
छंद -मधुमालती



Friday 6 December 2019

ग़ज़ल

212 212 212 2 

मैं  नही  कोई किरदार  में अब

बिक चुका हूँ मैं बाज़ार में अब

देखिए  तो   हटाकर  के  परदा

फूल  खिलने  लगे ख़ार में अब

हो  गए  इतने क़ातिल  जहाँ में

कम हो जाए जगह दार में अब

कोई  भी  तो समझ  ता नही है

दूरियाँ  क्यूँ  है घर-बार  में अब

होगा   अंजाम   जो   देख  लेंगे

सोचना क्या है  मजधार में अब

तुमने  जो  बातें कर ली बहुत है

इतना काफी है इस प्यार में अब

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

Tuesday 3 December 2019

दोहे -पिज्जा

1-इश्क करे जो जानता,दिल की हालत खूब।

    हर पल उसको चाहिए, धड़कन में महबूब।।


2-पिज्जा  हो  या आदमी , प्रेम  जरूरी चीज।

    जब तक बढ़िया न चढ़े ,लागे नही लज़ीज़।।


3-प्रेम  लगाती  आग  है , दिल  ये जाने खूब।

   इसी  लिए  तो  चाहिए , कुल्फी सी महबूब।।


4-तीखा  खट्टा  भी  नही ,न  गुड़ ज्यादा बेस्ट।

    जीवन  में  हो  चाट सा , खट्टा  मीठा  टेस्ट।।


5-प्रेम   होय  या  वासना , लागे  एक  समान।

  जो अन्तर को समझ गया,बनता वही महान।।



हेमंतकुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़