सूरज और जाड़ा
सूरज को समझा रही,उसकी अम्मी बात।
जाड़े का दिन आ गया,मत करना अब रात।।
जब भी जाता काम पर,ढाँप लिया कर कान।
शीत लहर कितना चले, है तुझको यह भान।।
मोजा स्वेटर कुछ नही, ना है बढ़िया शाल।
एसे ही तू घूमकर , बना लिया क्या हाल।।
गोरा चिट्टा लाल था , अब लागे है स्याह्।
देख तुझे इस हाल में,मुँह से निकले आह्।।
मै तो कहती हूँ तनय ,कर लो तुम उपवास।
कुछ दिन घर पर ही रहो,बैठ आग के पास।।
पर सूरज यह जानता , कहाँ उसे आराम।
हर स्वारथ को छोड़कर,करना है बस काम।।
दोहे.
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
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