meriapanikavitayen
Friday, 13 December 2019
मालिनी
पढ़ लिख कर यारों,ना समझ उन्हे आया।
सर पर अब भी है ,प्रेत बन कौन माया।
तन-मन पर देखो , रच गई वासना है।
हर शहर गली में , साँप से सामना है।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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