Friday 6 December 2019

ग़ज़ल

212 212 212 2 

मैं  नही  कोई किरदार  में अब

बिक चुका हूँ मैं बाज़ार में अब

देखिए  तो   हटाकर  के  परदा

फूल  खिलने  लगे ख़ार में अब

हो  गए  इतने क़ातिल  जहाँ में

कम हो जाए जगह दार में अब

कोई  भी  तो समझ  ता नही है

दूरियाँ  क्यूँ  है घर-बार  में अब

होगा   अंजाम   जो   देख  लेंगे

सोचना क्या है  मजधार में अब

तुमने  जो  बातें कर ली बहुत है

इतना काफी है इस प्यार में अब

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़

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