Wednesday 13 May 2020

ग़ज़ल

2122 1212 22


रोज़   मरना  है  रोज़  जीना  है

ज़िंदगी  भर  यही  तो  होना  है


ज़िंदगी  इक फटी कमीज़ तो है

सीना  है  और  फिर पहन ना है


बँट  गई   हैं  ग़रीबों  में  कम्बल

ठंड   की  तो  महज  बहाना  है


आग  चूले  पे अब  नही जलतीं

ये  सुना  है    वो  वहशियाना है


लुटता  ही  तो  गया  है मेरा सब

बच  गया  जो  वो भी  नकारा है



हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा   छत्तीसगढ़





 




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