Friday 23 October 2020

रोला

एक  हाथ  में  जाम,  एक में भगवत गीता।

ऐसे  में अब  सोंच, कहाँ  बच पाए सीता।।



रावण का ही भूत,बसा है जब जन-जन में।

मर्यादा  के राम, नजर  क्यूँ  आए  मन  में।।



मीरा  का यह देश,मगर कब दिखतीं मीरा।

गए  सूर  को भूल ,और खो  गए क बीरा।।



लोभ क्रोध के गीत,खुशी से हर दिन गाए।

दया प्रेम सद्भाव,कहाँ अब किसको भाए।।



ठगनी  माया   संग , सभी ने रास  रचाया।

भूल  गए  हैं प्रेम, दिखे बस सुंदर  काया।।



नारी  का  सम्मान , धर्म  हो  सबका भाई।

मन का रावण मार,साफ कर लें मन-काई।।



रचना

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा छत्तीसगढ़







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