एक हाथ में जाम, एक में भगवत गीता।
ऐसे में अब सोंच, कहाँ बच पाए सीता।।
रावण का ही भूत,बसा है जब जन-जन में।
मर्यादा के राम, नजर क्यूँ आए मन में।।
मीरा का यह देश,मगर कब दिखतीं मीरा।
गए सूर को भूल ,और खो गए क बीरा।।
लोभ क्रोध के गीत,खुशी से हर दिन गाए।
दया प्रेम सद्भाव,कहाँ अब किसको भाए।।
ठगनी माया संग , सभी ने रास रचाया।
भूल गए हैं प्रेम, दिखे बस सुंदर काया।।
नारी का सम्मान , धर्म हो सबका भाई।
मन का रावण मार,साफ कर लें मन-काई।।
रचना
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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