सत्य राह पर चला करे जो,केवल पीड़ा सहता।
झूठों के पौ-बारह होते,सत्य भूख से मरता।।
दबा पड़ा है सत्य कहीं पर,नजर नही अब आता।
चोर उचक्के बनते राजा ,यही सत्य है भ्राता।।
दाढ़ी मूछें लंबी लंबी , है माथे पर चंदन।
भीतर से रंगीन मिजाजी,बाहर है सादापन।।
वोटों की जब बारी आती,नेता घर घर जाते।
बैठ पालथी मजबूरी में,दलितों के घर खाते।।
जनता मारी मारी फिरती,दफ्तर से दफ्तर तक।
घुसखोरों की आमद बढ़ती,जनता है नत मष्तक।।
भोले भाले लोगों को तुम,जितना तड़फाओगे।
याद रखो ये बात सदा तुम,चैन नही पाओगे।।
इक दिन तो मर ही जाना है,रख बस इतनी हसरत।
हो हर दिल से प्यारा रिश्ता,ना कोई हो नफरत।।
धीरे धीरे आगे पीछे,बारी आती सबकी।
जैसे को तैसा मिलता है,देख रहा परलोकी।।
सत्य राह मे कष्ट सदा है,सत्य वचन है भैया।
आखिर मंजिल पहुँचा देती,सदा सत्य की नैया।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
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