Monday 4 September 2017

दोहा

                मोर गाँव

अमली आमा लीम अउ, बर पीपर  के  छाँव।
लागय भारत छोटकुन,मोर जनम के गाँव।।

पक्की रसदा हे बने,सफा सफा सब छोर।
शौचालय बन गे हवय,घर घर ओरी-ओर।।

तरिया मा पचरी बँधे,लगे पेड़ हे पार।
कमल खिले चारो मुड़ा,सादा लाली झार।

धान पान होथे बने,सबके खेती-खार।
छान्ही भर बगरे हवय,तुमा-कोंहड़ा नार।।

सीधा बड़ मनखे इहाँ,हवय गवँइहा ठेठ।
ना फेशन के सँउख हे,ना हे धरना सेठ।।

ना कोनो छोटे हवय,ना बड़का हे जात।
मया प्रेम सद्भाव ले,रहिथे सबो जमात।।

घर कुरिया छोटे भले,हिरदे जघा अपार।
मिल जुर के रहना इही,मोर गाँव के सार।।

दोहा

हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

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