दोहा (13/11)
श्रृंगार रस
सोलह के दहलीज पर,यह कैसी झंकार।
नई नई दुनिया दिखे,नया नया श्रृंगार।।
होठों पर मादक हँसी,नयना झलके प्यार।
बातों से मधुरस झरे, अलबेली है नार।।
झुमका मानो कह रहे,कानो में रस घोल।
यौवन तुझपे आ गया,गोरी कुछ तो बोल।।
गला सुराही की तरह,काले लंबे बाल।
माथे पर चंदा लगे,बिन्दी मखमल लाल।।
दर्पण कंघी से हुआ,अनायास ही प्यार।
सजने-धजने है लगी,दिन मे सोलह बार।।
स्वप्न सुनहरे आ गए, लेकर के बारात।
पिया-पिया मन कह उठा,नही चैन दिन-रात।।
नाच उठी पायल छनक,कँगना करती शोर।
प्रियतम मुझको ले चलो,प्रेम डगर की ओर।।
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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