(2122, 122,122)
दर्द दिल का हरा हो गया है
जब से वो बे-वफा हो गया है
चूमा था उस ने जिस भी जगह को
उस जगह का भला हो गया है
खुद ही बोए थे हमने जो काँटे
दर्द बनकर खड़ा हो गया है
नफ़रतें जब से हावी हुईं तो
प्यार जैसे हवा हो गया है
अब तो मयख़ाना हर आदमी का
जैसे स्थाई पता हो गया है
लोभ हावी हुआ तो हुआ ये
ज़्यादा भी अब ज़रा हो गया है
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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