122/122/122/122
था जो अपना वो बे-वफ़ा हो गया है
ज़ख्म तब से हर-सू हरा हो गया है
अभी चाँद को मैं बुला लेता छत पर
मगर वो किसी गैर का हो गया है
मुझे दोस्तों की जरूरत नही अब
मेरा दर्द जब हम-नवा हो गया है
जो मुतमइन था पहले मेरे असर से
किसी और का बा- खुदा हो गया है
जो आँसूओं से पिघलते ही कहाँ थे
सुना है वो पत्थर खुदा हो गया है
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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