Saturday 16 November 2019

मेरा दर्द जब हम-नवा हो गया है

122/122/122/122

था जो अपना वो बे-वफ़ा हो गया है

ज़ख्म तब से हर-सू  हरा  हो गया है


अभी चाँद को मैं बुला लेता छत पर

मगर  वो  किसी गैर  का  हो गया है


मुझे  दोस्तों  की  जरूरत  नही अब

मेरा  दर्द  जब  हम-नवा हो  गया है


जो मुतमइन था पहले  मेरे असर से

किसी और का बा- खुदा हो गया है


जो आँसूओं से पिघलते ही कहाँ थे

सुना  है  वो  पत्थर खुदा हो गया है



ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़

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