Sunday, 6 October 2019

ग़ज़ल(उनके तहख़ाने पे तहख़ाने लगे हैं)

2122/2122/2122

जाने क्या अब लोग समझाने लगे हैं

सब  की अपने ज़द  में पैमाने लगे हैं

प्यार  तो कोई नही  करता  है साहब

ये   हक़ीक़त   सामनें  आने  लगे  हैं

शाइरी   बीमार   है   शायर   मजे  में

क्या  ग़ज़लगोई  को  बहलाने लगे हैं

भूखें हैं इतनी हवस की  क्या कहूँ मैं

ये  तो  नाते-रिस्ते  भी  खाने  लगे हैं

शह्र में अब तो सहर जैसा नही कुछ

लोग फिर अब गाँव तक आने लगे हैं

क्या हुई जो रोशनी सूरज की कमतर

जुगनुएँ  भी  पंख  फैलाने  लगे  हैं

वे  बहुत  चालाक  हैं ये जान लो तुम

उनके   तहख़ाने  पे  तहख़ाने  लगे  हैं

ग़ज़ल

हेमंत कुमार मानिकपुरी

भाटापारा  छत्तीसगढ़






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