जाने क्या अब लोग समझाने लगे हैं
सब की अपने ज़द में पैमाने लगे हैं
प्यार तो कोई नही करता है साहब
ये हक़ीक़त सामनें आने लगे हैं
शाइरी बीमार है शायर मजे में
क्या ग़ज़लगोई को बहलाने लगे हैं
भूखें हैं इतनी हवस की क्या कहूँ मैं
ये तो नाते-रिस्ते भी खाने लगे हैं
शह्र में अब तो सहर जैसा नही कुछ
लोग फिर अब गाँव तक आने लगे हैं
क्या हुई जो रोशनी सूरज की कमतर
जुगनुएँ भी पंख फैलाने लगे हैं
वे बहुत चालाक हैं ये जान लो तुम
उनके तहख़ाने पे तहख़ाने लगे हैं
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा छत्तीसगढ़
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