एक बियंग--------------
लयिका मन कतेक चिल्लावत रहिथे,
गुरूजी कुर्सी म उंघावत रहिथे,
कुर्सी म बयीठयी पर गे भारी,
गुरूजी ल होगे कुर्सी के बीमारी ।
स्कूल म आथे तंहा उंघावत रहिथे,
कुर्सी के जीव घलो अकुलावत रहिथे,
लयीका मन के का होही फिकर नयी हे,
अइसे लागे स्कूल म गुरूजी नयी हे ।
गुरूजी के नाक फोसोर फोसोर बाजत हे,
लयीका मन देख कतका भकभकावत हे,
घंटी बाजथे त झकना के उठ जाथे,
गुड़ाखू माखुर खयीस तंहा फेर सो जाथे ।
कभू कभू मन परीस त पढ़ा दिस,
जैसे कोनो जनम के करजा उतार दिस,
तंहा ओतका म गुरूजी फूले रहिथे,
कहिथे कतको पढ़ा येमन ल अड़हा के अड़हा रहिथे ।
रचना-
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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