कोंख के कोनो धियान करव,
छाती के दूध के लाज रखव,
अंचरा के शीतल छांव देवयीया,
मोर महतारी के मान रखव ।
बहुत तरक्की कर लेव तुमन,
महल अटारी गढ़ लेव सबझन,
माटी के कुरिया भींगत परे हे,
छान्ही के खपरा के थोकिन धियान करव।
जेकरे चांऊर के पैना भरे हन,
कोंवर कोंवर भात बने हन,
आज दाना सीथा बर तरसत हे,
बटकी बासी के थोकिन गोठ करव।
नई हे जिनगी उतरत जात हे,
कनिहा अब घलो कोंघरत जात हे,
सीधा खड़े बर तोर कतका जतन करे हे,
टेड़गा लाठी के थोकिन सुध करव ।
मोर महतारी के मान रखव.....
रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
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